
प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम पर लगने वाला माघ मेला हर साल लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनता है। इसे कुंभ मेले का संक्षिप्त रूप भी कहा जाता है, जहाँ स्नान और दान करने से पापों से मुक्ति और मोक्ष मिलने की धार्मिक मान्यता है।
इस मेले की सबसे खास परंपरा ‘कल्पवास’ है, जिसमें भक्त एक महीने तक संगम तट पर रहकर सादा और संयमित जीवन जीते हुए ईश्वर की भक्ति करते हैं। समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा यह आध्यात्मिक आयोजन पूरे प्रयागराज को असीम श्रद्धा और ऊर्जा से सराबोर कर देता है।
पौष पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक आस्था का समागम
प्रयागराज में पारंपरिक माघ मेले की शुरुआत साल 2026 में 3 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ होगी और इसका समापन 15 फरवरी को महाशिवरात्रि के पर्व पर होगा। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, माघ का यह पूरा महीना बेहद पवित्र माना जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर आस्था की डुबकी लगाते हैं। इस दौरान कई प्रमुख स्नान पर्व आयोजित होंगे, जिन्हें शाही स्नान के समान महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रद्धालु इस डेढ़ महीने की अवधि में कल्पवास और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से पुण्य लाभ कमाते हैं।
माघ मेला 2026 के प्रमुख स्नान पर्व
- पौष पूर्णिमा स्नान: 3 जनवरी 2026
- मकर संक्रांति स्नान: 14 जनवरी 2026
- मौनी अमावस्या स्नान: 18 जनवरी 2026
- बसंत पंचमी स्नान: 23 जनवरी 2026
- माघ पूर्णिमा स्नान: 1 फरवरी 2026
- महाशिवरात्रि (समापन स्नान): 15 फरवरी 2026
श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षित और भव्य 8 किलोमीटर लंबे घाटों का निर्माण
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन गंगा और यमुना के संगम किनारे 8 किलोमीटर लंबा विशाल अस्थायी स्नान घाट तैयार कर रहा है। इन घाटों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं, जिसमें गहरे पानी में जाने से रोकने के लिए मजबूत बैरिकेडिंग लगाई जा रही है। घाटों के किनारों को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने के लिए सीमेंट की बोरियों में रेत भरकर खास व्यवस्था की गई है। इस पूरी पहल का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को बिना किसी डर के सुरक्षित तरीके से पवित्र स्नान की सुविधा प्रदान करना है।
लंबे घाटों से श्रद्धालुओं को मिलेगी राहत
प्रशासन ने कुंभ मेले में सुरक्षा और सुव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए संगम पर लंबे घाटों का निर्माण किया है, जिससे ‘संगम नोज’ पर भीड़ का दबाव काफी कम हो जाएगा। बड़े स्नान पर्वों के दौरान श्रद्धालुओं को अलग-अलग घाटों पर भेजा जाएगा, ताकि सभी सुरक्षित तरीके से स्नान कर सकें। यह मेला न केवल अखाड़ों के शिविरों, साधु-संतों की तपस्या और प्रवचनों का केंद्र है, बल्कि उन लोगों के लिए भी खास है जो देसी खानपान और ग्रामीण संस्कृति के साथ आध्यात्मिक भारत को शांति से महसूस करना चाहते हैं।









