
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में साफ किया है कि यदि पति या पत्नी में से कोई एक विदेश में रहता है, तो वहां की अदालत भारतीय शादी से जुड़े तलाक और गुजारा भत्ता (मेंटेनेंस) के मामलों पर सुनवाई कर सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विदेशी अदालत द्वारा दिया गया फैसला भारत में भी प्रभावी होगा।
इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस पुराने आदेश को रद्द कर दिया, जिसने ब्रिटेन की एक अदालत के फैसले पर रोक लगा दी थी। यह फैसला उन जोड़ों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो विदेश में बस चुके हैं और वहां की कानूनी प्रक्रिया के जरिए अलग होना चाहते हैं।
विदेशी कोर्ट में तलाक का मुकदमा
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई हिंदू जोड़ा विदेश में आखिरी बार साथ रहा था, तो वहां की अदालत को भी उनके तलाक के मामले की सुनवाई करने का कानूनी अधिकार है। जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य और जस्टिस सुप्रतिम भट्टाचार्य की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की व्याख्या व्यावहारिक होनी चाहिए।
यदि पति-पत्नी अंतिम बार यूके (UK) में एक साथ रहे थे और पत्नी वहीं रह रही है, तो वहां की फैमिली कोर्ट का फैसला भारत में पूरी तरह अमान्य नहीं माना जा सकता। कोर्ट के इस आदेश से उन भारतीय दंपतियों को राहत मिलेगी जो विदेशों में बस गए हैं और वहीं से कानूनी प्रक्रिया पूरी करना चाहते हैं।
पति-पत्नी के तलाक विवाद में भारतीय अदालत का बड़ा फैसला
कोलकाता के एक दंपती के बीच चल रहे तलाक के मामले में अलीपुर जिला अदालत ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। साल 2018 में शादी के बाद पति ने सितंबर 2024 में भारत में तलाक की अर्जी दी थी, जबकि पत्नी ने इसके जवाब में ब्रिटेन (UK) की अदालत में याचिका दायर कर गुजारा भत्ते की मांग की। ब्रिटेन की अदालत ने पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश भी दे दिया था, लेकिन भारतीय अदालत ने अब इस पर रोक लगा दी है। अदालत का कहना है कि पत्नी ब्रिटेन में इस कानूनी कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ा सकती, जिससे अब यह अंतरराष्ट्रीय कानूनी विवाद और भी पेचीदा हो गया है।
अलीपुर कोर्ट ने यूके (UK) कोर्ट के फैसले पर क्यों लगाई रोक?
अलीपुर कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यूके की अदालत के आदेश को मानने से इनकार कर दिया है। कोर्ट का तर्क है कि चूंकि पति ने तलाक की अर्जी पहले भारत में दी थी, इसलिए इस मामले पर फैसला सुनाने का कानूनी अधिकार भारतीय अदालत के पास है, न कि विदेशी अदालत के पास। इसके अलावा, कोर्ट ने पाया कि पत्नी यूके की स्थायी निवासी नहीं है और वहां की अदालत द्वारा तय किया गया गुजारा भत्ता पति की कमाई के मुकाबले बहुत अधिक और अन्यायपूर्ण है। इन आधारों पर कोर्ट ने विदेशी आदेश को ‘कठोर’ मानते हुए उस पर रोक लगा दी है।
विदेश में चल रहे मुकदमे पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि पति-पत्नी में से कोई विदेश में तलाक या गुजारा भत्ते का केस करता है, तो उसे भारत में नहीं रोका जा सकता। इस मामले में, पत्नी ने यूके (UK) में याचिका दायर की थी और पति ने वहां कोर्ट में हिस्सा लेकर अपने सबूत भी पेश किए थे।
हाईकोर्ट ने माना कि जब पति विदेश की कानूनी कार्यवाही में शामिल हो चुका है, तो वह बाद में यह नहीं कह सकता कि वह वहां केस लड़ने में असमर्थ है। इस आधार पर कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा विदेशी कार्यवाही पर लगाई गई रोक को हटा दिया। यह फैसला उन लोगों के लिए बहुत अहम है जो शादी के बाद विदेश में बस जाते हैं और वहां कानूनी विवाद का सामना कर रहे हैं।









