
बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से वहां कट्टरपंथी ताकतें काफी सक्रिय हो गई हैं, जिसका सीधा असर भारत के साथ उनके रिश्तों पर पड़ रहा है। मौजूदा सरकार पर इन ताकतों का गहरा प्रभाव दिख रहा है, जिसके कारण वहां भारत विरोधी स्वर लगातार तेज हो रहे हैं।
हैरानी की बात यह है कि भौगोलिक रूप से चारों ओर से भारत से घिरा होने के बावजूद, वहां के कुछ कट्टरपंथी तत्व भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ‘चिकन नेक’ (सिलिगुड़ी कॉरिडोर) को नुकसान पहुँचाने जैसी भड़काऊ धमकियां दे रहे हैं। यह स्थिति न केवल दोनों देशों के पुराने ऐतिहासिक संबंधों को चुनौती दे रही है, बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी एक चिंता का विषय बनी हुई है।
रंगपुर डिवीजन और चिकन नेक: क्या भारत के लिए बढ़ सकती है सुरक्षा?
सोशल मीडिया पर इन दिनों बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन को लेकर काफी चर्चा हो रही है। जानकारों का कहना है कि यह इलाका भौगोलिक दृष्टि से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका करीब 90 प्रतिशत हिस्सा पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा हुआ है। चर्चा यह है कि यदि यह क्षेत्र स्वतंत्र होता है, तो भारत का संकरा ‘चिकन नेक’ (सिलीगुड़ी कॉरिडोर) 120 से 150 किमी तक चौड़ा हो जाएगा। इससे पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँचने का रास्ता न केवल सुरक्षित होगा, बल्कि भारत की सुरक्षा संबंधी एक बहुत बड़ी चिंता भी हमेशा के लिए खत्म हो सकती है।
भारत और बांग्लादेश संबंध
अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार कोई भी देश दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहता, और भारत भी हमेशा वैश्विक कानूनों का सम्मान करता है। लेकिन, जब पड़ोसी देश की अस्थिरता से खुद की सुरक्षा को खतरा हो, तो चुप बैठना संभव नहीं होता।
बांग्लादेश की स्थिति भारत के लिए बेहद संवेदनशील है क्योंकि वहां होने वाली किसी भी हलचल का सीधा और गहरा असर हमारे देश पर पड़ता है। ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अपनी सीमाओं और नागरिकों की रक्षा के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कदम उठाना किसी भी जिम्मेदार राष्ट्र की मजबूरी बन जाता है।
सुरक्षा की चिंता और शक्ति का प्रदर्शन
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का मुख्य कारण रूस की अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखने की कोशिश है। जब यूक्रेन ने पश्चिमी देशों के सैन्य गठबंधन (NATO) में शामिल होने की इच्छा जताई, तो रूस ने इसे अपनी सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा माना। अपनी सैन्य शक्ति के दम पर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया ताकि वह NATO को अपनी सीमा तक आने से रोक सके।
आज स्थिति यह है कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश भी शांति के लिए वही शर्तें मान रहे हैं जो रूस शुरू से चाहता था—जैसे यूक्रेन का NATO से दूर रहना और रूस के कब्जे वाले क्षेत्रों को मान्यता देना। यह उदाहरण दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सैन्य शक्ति और सुरक्षा की चिंताएं कितनी महत्वपूर्ण होती हैं।
भारत-बांग्लादेश सीमा तनाव
अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार, यदि किसी देश की सुरक्षा को खतरा हो, तो वह रक्षा के लिए सैन्य कदम उठा सकता है। वर्तमान में बांग्लादेश के नेतृत्व द्वारा भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने से ऐसी स्थिति बनती दिख रही है, जहाँ भारत को अपनी सुरक्षा के लिए हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। हालांकि, जानकारों का मानना है कि ऐसा कोई भी सैन्य कदम रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह लंबा खिंच सकता है, जिससे दोनों देशों को भारी आर्थिक नुकसान और बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
बांग्लादेश निर्माण और सिलीगुड़ी कॉरिडोर
साल 1971 में बांग्लादेश के जन्म के समय भारत के पास अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने का एक बड़ा मौका था। भारत चाहता तो अपने संकरे ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ (चिकन नेक) को सुरक्षित करने के लिए बांग्लादेश के कुछ हिस्सों को खुद में मिला सकता था या उसे एक अलग स्वतंत्र क्षेत्र बना सकता था।
उस समय भारत का पलड़ा भारी था, क्योंकि भारतीय सेना ने बांग्लादेश की आजादी के लिए पूरी दुनिया और यहाँ तक कि अमेरिका के विरोध के बावजूद युद्ध लड़ा था। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी दूरदर्शिता और शानदार नेतृत्व का परिचय देते हुए केवल बांग्लादेश के निर्माण को प्राथमिकता दी, जो इतिहास का एक निर्णायक फैसला साबित हुआ।
जनसंख्या और धार्मिक आबादी का गणित
पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा रंगपुर डिवीजन बांग्लादेश का एक प्रमुख और घनी आबादी वाला क्षेत्र है, जहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर लगभग 1200 लोग रहते हैं। 1.9 करोड़ की कुल आबादी वाले इस डिवीजन में 86% मुस्लिम और 13% हिंदू (लगभग 23 लाख) निवास करते हैं।
प्रतिशत के लिहाज से यह बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ी हिंदू आबादी वाला डिवीजन है, जबकि पहले स्थान पर सिलहट (13.51%) आता है। हालाँकि, यदि हम केवल संख्या की बात करें, तो राजधानी ढाका डिवीजन में सबसे अधिक 28 लाख हिंदू रहते हैं, लेकिन वहां की कुल आबादी बहुत ज्यादा होने के कारण प्रतिशत में उनकी हिस्सेदारी मात्र 6.26% ही रह जाती है।
गपुर को अलग भू-भाग बनाने की रणनीति: क्या है पूरा प्लान?
रंगपुर डिवीजन को बांग्लादेश से अलग करना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें सैन्य कार्रवाई से पहले स्थानीय स्तर पर मजबूत आधार की आवश्यकता होगी। रणनीति के अनुसार, सबसे पहले बांग्लादेश के हिंदुओं को इस क्षेत्र में अपनी जनसंख्या और एकजुटता बढ़ानी होगी ताकि वे आंतरिक रूप से सुरक्षित और शक्तिशाली बन सकें।
यदि भविष्य में उनके साथ उत्पीड़न या भेदभाव होता है, तो वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने लिए एक अलग भू-भाग की मांग उठा सकते हैं। ऐसी स्थिति में भारत के लिए उन्हें परोक्ष सहायता देना और उनकी मांग का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन करना आसान हो जाएगा। अंततः, अनुकूल भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाकर और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच, आवश्यकता पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए रंगपुर को एक स्वतंत्र पहचान दिलाई जा सकती है, लेकिन इसकी पहली शुरुआत वहां के नागरिकों के संगठित होने से ही होगी।









