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Railway Facts: क्या आप जानते हैं ट्रेन के इंजन की खिड़की पर क्यों लगी होती है जाली? इसकी वजह जानकर आप भी रह जाएंगे हैरान, सुरक्षा से जुड़ा है राज

क्या आपने कभी गौर किया है कि ट्रेन के इंजन की खिड़कियों पर लोहे की जाली क्यों लगी होती है? यह कोई साधारण डिजाइन नहीं, बल्कि ड्राइवर की जान बचाने वाला एक मजबूत 'कवच' है। तेज रफ्तार ट्रेन और सुरक्षा से जुड़े इस दिलचस्प राज को जानने के लिए यह लेख जरूर पढ़ें।

By Pinki Negi

Railway Facts: क्या आप जानते हैं ट्रेन के इंजन की खिड़की पर क्यों लगी होती है जाली? इसकी वजह जानकर आप भी रह जाएंगे हैरान, सुरक्षा से जुड़ा है राज
Railway Facts

ट्रेन में सफर करते समय अक्सर हमारा ध्यान पटरियों के पत्थरों या स्टेशन बोर्ड पर लिखी ‘समुद्र तल से ऊंचाई’ जैसी चीजों पर जाता है। ऐसी ही एक दिलचस्प चीज है ट्रेन के इंजन की खिड़की पर लगी लोहे की जाली। बहुत से यात्री इसे देखकर सोचते हैं कि आखिर इसका काम क्या है।

दरअसल, यह जाली लोको पायलट की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी होती है, ताकि यात्रा के दौरान किसी बाहरी वस्तु या शरारती तत्वों द्वारा फेंके गए पत्थरों से शीशा न टूटे और ड्राइवर सुरक्षित रहकर ट्रेन चला सके। रेलवे से जुड़े ऐसे ही अनसुने और मजेदार तथ्यों को जानना वाकई रोमांचक होता है।

कैसे दौड़ती है पटरी पर ट्रेन?

ट्रेन का इंजन कई जरूरी मशीनरी और पार्ट्स से मिलकर बना होता है, जो इसे शक्ति प्रदान करते हैं। इसके मुख्य हिस्सों में ‘ट्रैक्शन मोटर’ पहियों को घुमाने का काम करती है, जबकि ‘कंट्रोल सिस्टम’ और ‘ट्रांसमिशन’ पूरी ट्रेन की गति और पावर को संभालते हैं। इसके अलावा इंजन में कूलिंग पंखे और कंप्रेसर जैसे सहायक उपकरण भी होते हैं। लोको पायलट इन सभी मशीनों को थ्रॉटल, ब्रेक लीवर और विभिन्न गेज (मीटर) की मदद से नियंत्रित करता है, ताकि ट्रेन सुरक्षित रूप से अपनी मंजिल तक पहुँच सके।

एक किलोमीटर चलने में कितना डीजल पी जाता है रेल इंजन ?

ट्रेन का इंजन कितना ईंधन खर्च करेगा, यह उसके वजन और डिब्बों की संख्या पर निर्भर करता है। आमतौर पर इसे ‘लीटर प्रति किलोमीटर’ में मापा जाता है। एक पैसेंजर ट्रेन को चलाने के लिए लगभग 4 से 6 लीटर डीजल प्रति किलोमीटर की जरूरत होती है। वहीं, मालगाड़ियों के मामले में ईंधन की खपत बहुत ज्यादा होती है क्योंकि वे भारी वजन ढोती हैं। इसके अलावा, ट्रेन की रफ्तार और रास्ते में होने वाले ठहराव (Stoppages) भी इस बात को तय करते हैं कि इंजन कितना तेल पिएगा। सरल शब्दों में कहें तो, जितनी भारी ट्रेन और जितने ज्यादा स्टॉपेज, तेल की खपत उतनी ही अधिक होगी।

ट्रेन के इंजन पर क्यों लगी होती है लोहे की जाली?

ट्रेन के इंजन की खिड़की पर जाली लगाने का सबसे मुख्य कारण लोको पायलट (ड्राइवर) की सुरक्षा है। जब ट्रेन 130 से 160 किमी प्रति घंटे जैसी तेज रफ्तार से दौड़ती है, तो पटरियों पर पड़े पत्थर या अन्य चीजें हवा में उछलकर इंजन के शीशे से टकरा सकती हैं। ऐसे में यह जाली एक कवच की तरह काम करती है और शीशे को टूटने से बचाती है, ताकि ड्राइवर को कोई चोट न लगे और ट्रेन का सफर सुरक्षित बना रहे। यह छोटी सी दिखने वाली जाली तेज रफ्तार में होने वाले किसी भी बड़े हादसे को रोकने में मददगार होती है।

ट्रेन के इंजन और खिड़कियों पर क्यों होती है जाली

ट्रेन के इंजन और खिड़कियों पर जाली लगाने के मुख्य कारणों को आप इन पॉइंट्स में आसानी से समझ सकते हैं:

  • लोको पायलट की सुरक्षा: तेज रफ्तार में पटरी से उछलने वाले पत्थर या गिट्टी लोको पायलट (ड्राइवर) को चोट न पहुँचा सकें, इसलिए जाली कवच का काम करती है।
  • शीशे को टूटने से बचाना: शताब्दी और राजधानी जैसी हाई-स्पीड ट्रेनों में हवा का दबाव और सामने से आने वाली चीजों की टक्कर बहुत जोरदार होती है। जाली इस प्रभाव को कम कर शीशे की सुरक्षा करती है।
  • बाहरी रुकावटों से बचाव: घने जंगलों या ग्रामीण इलाकों से गुजरते समय पेड़ की टहनियाँ या कोई भी बाहरी वस्तु सीधे इंजन के शीशे से नहीं टकरा पाती।
  • यात्रियों की सुरक्षा: डिब्बों की खिड़कियों पर लगी रॉड या जाली यात्रियों को हाथ या सिर बाहर निकालने से रोकती है, जिससे यात्रा के दौरान दुर्घटना का खतरा कम हो जाता है।

वंदे भारत में क्यों नहीं होती लोहे की जाली?

वंदे भारत जैसी अत्याधुनिक सेमी हाई-स्पीड ट्रेनों के इंजन पर आपको लोहे की जाली नजर नहीं आएगी, क्योंकि इनकी खिड़कियों में विशेष प्रकार के ‘आर्मर्ड ग्लास’ (बख्तरबंद शीशे) का इस्तेमाल किया जाता है। यह शीशा इतना मजबूत होता है कि तेज रफ्तार में पत्थर लगने पर भी आसानी से नहीं टूटता। जाली न होने की वजह से लोको पायलट को सामने का नजारा एकदम साफ (बेहतर विजिबिलिटी) दिखाई देता है, जिससे ट्रेन चलाना आसान और सुरक्षित हो जाता है। यह तकनीक सुरक्षा और आधुनिक डिजाइन का एक बेहतरीन तालमेल है।

Author
Pinki Negi
GyanOK में पिंकी नेगी बतौर न्यूज एडिटर कार्यरत हैं। पत्रकारिता में उन्हें 7 वर्षों से भी ज़्यादा का अनुभव है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साल 2018 में NVSHQ से की थी, जहाँ उन्होंने शुरुआत में एजुकेशन डेस्क संभाला। इस दौरान पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए अनुभव लेने के बाद अमर उजाला में अपनी सेवाएं दी। बाद में, वे नेशनल ब्यूरो से जुड़ गईं और संसद से लेकर राजनीति और डिफेंस जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर रिपोर्टिंग की। पिंकी नेगी ने साल 2024 में GyanOK जॉइन किया और तब से GyanOK टीम का हिस्सा हैं।

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