
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति किसे देना चाहता है, यह पूरी तरह उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर है। अदालत ने उस पिता की वसीयत को सही ठहराया जिसने अपनी नौ संतानों में से एक बेटी को संपत्ति से बेदखल कर दिया था।
कोर्ट ने कहा कि वसीयतकर्ता की अंतिम इच्छा को केवल इसलिए नहीं बदला जा सकता कि वह किसी को संपत्ति नहीं देना चाहता या वह फैसला बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ दिखता है। अगर वसीयत कानूनी रूप से सही साबित हो जाती है, तो उसे चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि संपत्ति पर मालिक का हक सर्वोपरि होता है।
कोर्ट में बेटी की कानूनी लड़ाई
यह मामला एन.एस. श्रीधरन की 1988 की उस वसीयत से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अपनी संपत्ति केवल अपने आठ बच्चों के नाम कर दी थी और अपनी एक बेटी को इससे बेदखल कर दिया था। सालों बाद 2011 में, उस बेटी ने संपत्ति में हिस्सेदारी के लिए मुकदमा दायर किया।
हालांकि पहले उसने इस वसीयत का विरोध नहीं किया था, लेकिन इस बार निचली अदालत ने बेटी के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत का मानना था कि वसीयत की सच्चाई साबित करने के लिए जो गवाह पेश किया गया, उसने दूसरे गवाह के हस्ताक्षर के बारे में ठीक से जानकारी नहीं दी, जिससे वसीयत की कानूनी मान्यता पर सवाल खड़े हो गए।
गवाह के बयान पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ किया है कि अगर किसी गवाह से ‘सूचक प्रश्न’ (ऐसा सवाल जिसमें उत्तर पहले से ही छिपा हो) पूछकर कोई जवाब निकलवाया जाता है, तो उसे पुख्ता सबूत नहीं माना जाएगा। इस मामले में एक गवाह ने दूसरे गवाह की मौजूदगी की बात तो मान ली थी, लेकिन अदालत ने इसे सबूत के तौर पर इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि यह जवाब सीधे तौर पर नहीं, बल्कि सवाल के प्रभाव में दिया गया था। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने पिछले फैसले को सही ठहराते हुए बरकरार रखा।
वसीयत की वैधता पर अपीलकर्ता के मुख्य तर्क
अपील करने वाले पक्ष ने कोर्ट में यह दलील दी कि उन्होंने वसीयत से जुड़े सभी कानूनी नियमों का पूरी तरह पालन किया है। उन्होंने बताया कि गवाह (DW-2) ने गवाही दी है कि वसीयत लिखने वाले ने उनके सामने हस्ताक्षर किए थे और वहां दूसरे गवाह भी मौजूद थे। अपीलकर्ताओं का कहना है कि उनकी वसीयत को गलत साबित करने के लिए बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है, जबकि कानूनी तौर पर वसीयत की सभी शर्तें पूरी की गई हैं।
गवाही में सामने आया अंतर
इस मामले में वादी पक्ष ने वसीयत को फर्जी बताते हुए तर्क दिया कि गवाह की बातें आपस में मेल नहीं खा रही हैं। गवाह का कहना था कि वह वसीयतकर्ता के घर सिर्फ एक बार गया, जबकि वसीयत लिखने और उसके पंजीकरण (Registration) की तारीखें अलग-अलग थीं। पिछले अदालती फैसलों का उदाहरण देते हुए यह कहा गया कि वसीयत को साबित करने के लिए जो कानूनी शर्तें पूरी होनी चाहिए थीं, वे इस केस में पूरी नहीं की गई हैं।
वसीयत और गवाह के बयान पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान साफ किया कि गवाह से पूछताछ (जिरह) के दौरान मिले जवाब बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। कोर्ट ने पाया कि भले ही गवाह ने शुरुआत में दूसरे व्यक्ति के हस्ताक्षर की बात साफ तौर पर न कही हो, लेकिन विपक्षी वकील द्वारा पूछे गए सवालों के दौरान उसने ‘हाँ’ कहकर इस बात की पुष्टि कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की उस बात को गलत ठहराया जिसमें कहा गया था कि वकील के सीधे या ‘सूचक प्रश्नों’ पर दिए गए गवाह के जवाबों की अहमियत कम होती है। कोर्ट के अनुसार, गवाह ने जो स्वीकार किया है, वह सबूत के तौर पर पूरी तरह मान्य है।
वसीयत के मामले में सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि गवाही के दौरान पूछे गए सीधे सवालों (लीडिंग क्वेश्चन) के जवाबों को कमजोर सबूत नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने वसीयत के पंजीकरण और तारीखों में मामूली अंतर को नजरअंदाज करते हुए कहा कि चूंकि गवाही वसीयत बनने के 24 साल बाद दी गई थी, इसलिए इतने लंबे समय बाद छोटी-मोटी बातों में विसंगति आना स्वाभाविक है। पुराने कानूनी मामलों का हवाला देते हुए अदालत ने माना कि समय के साथ गवाहों की याददाश्त में थोड़ा बहुत बदलाव आना कोई बड़ी बात नहीं है और इससे वसीयत की सच्चाई पर सवाल नहीं उठता।
वसीयत पर कोर्ट का बड़ा फैसला
अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि वसीयत लिखते समय वसीयतकर्ता की पसंद और मंशा सबसे महत्वपूर्ण होती है। कोर्ट ने कहा कि किसी गवाह से यह उम्मीद करना गलत है कि उसे सालों पुरानी हर छोटी बात गणित की तरह सटीक याद रहे।
मामले में बेटी को संपत्ति से बाहर रखने पर कोर्ट ने साफ किया कि वह अपनी राय वसीयतकर्ता पर नहीं थोप सकता। भले ही किसी को बेदखल करने का कारण (जैसे अंतरजातीय विवाह) आज के हिसाब से सही न लगे, लेकिन कानूनन हमें वसीयतकर्ता के नजरिए और उसकी पसंद का सम्मान करना होगा, क्योंकि वह अपनी संपत्ति का फैसला करने के लिए स्वतंत्र था।









