
भारत में कई ऐसे पुराने ब्रांड्स हैं जिनकी पहचान आज भी अटूट है, और इन्हीं में से एक है सबका पसंदीदा पारले-जी बिस्किट। साल 1928 में शुरू हुई यह कंपनी जल्द ही अपने 100 साल पूरे करने जा रही है। इस सफल ब्रांड के पीछे विजय चौहान और उनका परिवार है, जिनकी गिनती भारत के सबसे अमीर लोगों में होती है। फोर्ब्स के मुताबिक, 78,000 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ यह परिवार देश के सबसे रईस घरानों की सूची में 31वें स्थान पर आता है।
पारले-जी की सफलता और इसकी शुरुआत की कहानी
आज पारले प्रोडक्ट्स कंपनी की कमान विजय चौहान के हाथों में है। यह कंपनी अपने मशहूर ‘पारले-जी’ (Parle-G) बिस्किट के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है, जिसकी शुरुआत साल 1939 में हुई थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पारले-जी बिस्किट बनाने का विचार सबसे पहले किसके मन में आया था और एक छोटे से कारखाने से शुरू हुई यह कंपनी आज बिस्किट की दुनिया की बेताज बादशाह कैसे बनी? आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक सफर के बारे में।
स्वदेशी बिस्किट का 100 साल पुराना सफर
पारले-जी बिस्किट की कहानी सन् 1928 में शुरू हुई, जब मोहनलाल चौहान ने अंग्रेजों के ज़माने में एक भारतीय बिस्किट ब्रांड बनाने का सपना देखा। उन्होंने मात्र 60,000 रुपये की पूंजी लगाकर जर्मनी से मशीनें मंगवाईं और मुंबई के विले पार्ले इलाके में एक छोटी सी फैक्ट्री डाली। अपने पांच बेटों के साथ मिलकर उन्होंने स्वदेशी की भावना के साथ इस कारोबार को आगे बढ़ाया, जो आज दुनिया के सबसे मशहूर बिस्किट ब्रांड्स में से एक बन चुका है।
पारले-जी की सफलता और दुनिया भर में इसकी धाक
साल 1928 में शुरू हुए पारले-जी को असली पहचान भारत की आजादी के बाद मिली, जब यह विदेशी बिस्किटों का शानदार भारतीय विकल्प बनकर उभरा। बिस्किट की भारी सफलता के बाद कंपनी ने सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य खाद्य उत्पादों (FMCG) के क्षेत्र में भी बड़ी उपलब्धि हासिल की।
आज पारले-जी के कारखाने भारत ही नहीं बल्कि मेक्सिको समेत 8 अन्य देशों में भी हैं। साल 2011 में इसे दुनिया का सबसे ज़्यादा बिकने वाला बिस्किट घोषित किया गया था। वर्तमान में, मोहनलाल चौहान द्वारा शुरू की गई इस विरासत को उनके पोते विजय चौहान और उनका परिवार बखूबी आगे बढ़ा रहा है।









