
भारत में इन दिनों दो बिल्कुल अलग-अलग प्रकृतिक आपदाएं एक साथ शिक्षा व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं। एक तरफ दक्षिण भारत में चक्रवात दितवाह का कहर है, तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जहरीली हवा ने बच्चों की सांसें मुश्किल कर दी हैं। दोनों ही परिस्थितियां यह सवाल खड़ा करती हैं कि आखिर बच्चों की पढ़ाई और सेहत में से प्राथमिकता किसे दी जाए?
दक्षिण भारत में चक्रवात दितवाह की दस्तक
बंगाल की खाड़ी में उठे चक्रवाती तूफान दितवाह ने तमिलनाडु, पुडुचेरी और आंध्र प्रदेश को अपनी चपेट में ले लिया है। भारी बारिश और तेज हवाओं के बीच इन राज्यों की सरकारों के पास स्कूल बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। पुडुचेरी के गृह एवं शिक्षा मंत्री ए. नमस्सिवायम ने 1 दिसंबर को राज्य के सभी सरकारी और निजी स्कूल-कॉलेज बंद रखने का आदेश दिया। तमिलनाडु के कुड्डालोर, नागापट्टिनम, चेन्नई और चेंगलपट्टू जैसे कई जिलों में भी यही स्थिति है।
यह फैसला महज सावधानी नहीं, बल्कि जरूरत थी। तूफान के कारण तमिलनाडु में 3 लोगों की जान जा चुकी है और 57,000 हेक्टेयर से अधिक खेती पानी में डूब गई है। मौसम विभाग ने रेड अलर्ट जारी करते हुए कहा है कि अगले 24 घंटों में 115 मिलीमीटर से अधिक बारिश हो सकती है। ऐसे में बच्चों को सुरक्षित घर में रखना ही समझदारी है।
स्कूल भवन बने राहत शिविर
आपदा के समय स्कूल भवनों की भूमिका सिर्फ शिक्षा देने तक सीमित नहीं रहती। ऐसी मुश्किल घड़ी में ये इमारतें अस्थायी राहत शिविरों में बदल जाती हैं। वेदारण्यम में 120 से अधिक परिवार बाढ़ में फंसे हुए हैं और NDRF की 28 से ज्यादा टीमें बचाव कार्य में जुटी हैं। जब तक तूफान का असर कम नहीं होता, स्कूल बंद रखना न केवल बच्चों की सुरक्षा के लिए जरूरी है, बल्कि यह आपदा प्रबंधन का अहम हिस्सा भी है।
दिल्ली में जहरीली हवा के बीच खुले स्कूल
दूसरी तरफ दिल्ली-एनसीआर की कहानी अलग है। यहां चक्रवात नहीं, बल्कि प्रदूषण ने बच्चों की जिंदगी मुश्किल बना रखी है। एक सप्ताह से अधिक समय तक स्कूल बंद रहे और हाइब्रिड मोड में पढ़ाई चली। लेकिन छोटे बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना न तो शिक्षकों के लिए आसान था, न ही माता-पिता के लिए। 1 दिसंबर 2025 से नर्सरी से कक्षा 5 तक के स्कूल फिर से नियमित ऑफलाइन मोड में खुल गए हैं।
हालांकि दिल्ली की हवा अभी भी खतरनाक श्रेणी में है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कई इलाकों में 400 के पार दर्ज हो रहा है। ऐसे में सरकार ने कुछ सख्त नियम बनाए हैं। बच्चों को स्कूल आते-जाते समय N95 मास्क पहनना अनिवार्य है। सभी बाहरी गतिविधियां, खेलकूद और असेंबली पर पूरी तरह रोक है। कक्षाओं में जहां संभव हो, एयर प्यूरीफायर लगाने और खिड़कियां-दरवाजे बंद रखने की सलाह दी गई है।
बच्चों की सेहत पर गहराता संकट
डॉक्टरों का कहना है कि लंबे समय तक जहरीली हवा में रहना बच्चों के फेफड़ों और मानसिक विकास दोनों के लिए नुकसानदेह है। खांसी, सांस लेने में तकलीफ और आंखों में जलन जैसी शिकायतें आम हो गई हैं। अगर किसी बच्चे में ऐसे लक्षण दिखें तो उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए और तब तक स्कूल नहीं भेजना चाहिए।
नीति निर्माताओं के सामने नई चुनौती
ये दोनों घटनाएं एक बड़े सवाल की ओर इशारा करती हैं। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण अब सिर्फ वैज्ञानिक बहस का विषय नहीं रहे, ये सीधे हमारे बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। चाहे चक्रवात हो या स्मॉग, दोनों ही परिस्थितियों में स्कूल बंद करना अंतिम उपाय है, लेकिन यह कोई स्थायी समाधान नहीं।
सरकारों को अब ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो बच्चों की पढ़ाई को जलवायु संकट से बचा सकें। हाइब्रिड शिक्षण को और प्रभावी बनाना, स्कूलों में एयर प्यूरीफायर लगाना और आपदा प्रतिरोधी स्कूल भवन बनाना ये कुछ ऐसे कदम हैं जो लंबी अवधि में मददगार साबित हो सकते हैं। आखिरकार, हमारे बच्चे ही देश का भविष्य हैं और उनकी सुरक्षित शिक्षा हर हाल में सुनिश्चित होनी चाहिए।









