
आने वाले समय में स्विगी, ज़ोमैटो, ओला और ऊबर जैसी कंपनियों की सेवाओं का इस्तेमाल करना उपयोगकर्ताओं के लिए महंगा हो सकता है। इसकी मुख्य वजह है सरकार द्वारा लागू किए गए नए श्रम संहिता (Labor Codes)। इन नए नियमों के तहत, इन कंपनियों के गिग वर्कर्स (डिलीवरी और राइडिंग पार्टनर) को सामाजिक सुरक्षा लाभ (Social Security Benefits) देना अनिवार्य हो गया है। इस कारण, भारत में इन गिग-इकोनॉमी प्लेटफॉर्म्स की लागत जल्द ही बढ़ सकती है, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा।
नए लेबर कोड से डिलीवरी चार्ज बढ़ेंगे
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट के अनुसार, नए लेबर कोड लागू होने पर फूड डिलीवरी और राइड शेयरिंग प्लेटफॉर्म की प्रति ऑर्डर लागत (Cost per Order) बढ़ सकती है। सरकार की शर्त के अनुसार, इन प्लेटफॉर्म्स को सोशल सिक्योरिटी फंड में कुल भुगतान का लगभग 5% तक योगदान देना पड़ सकता है।
इससे हर फूड ऑर्डर पर ₹3.2 और क्विक-कॉमर्स ऑर्डर पर ₹2.4 तक का अतिरिक्त खर्च आएगा, जिसका सीधा बोझ ग्राहकों पर प्लेटफॉर्म फीस या सर्ज चार्ज के रूप में पड़ सकता है। हालाँकि, अगर सरकार सभी लाभों को एक केंद्रीय फंड से देती है, तो यह अतिरिक्त लागत घटकर केवल ₹1-₹2 रह सकती है।
नए लेबर कोड से गिग वर्कर्स को लाभ, कंपनियों को अवसर
सरकार ने 21 नवंबर से चार प्रमुख लेबर कोड्स लागू किए हैं, जो 29 पुराने कानूनों को एक साथ लाते हैं। ये पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स पर भी लागू किए गए हैं, जिससे उन्हें पेंशन और स्वास्थ्य बीमा जैसे लाभ मिल सकेंगे। ये नए और सरल नियम औपचारिक स्टाफिंग कंपनियों (जैसे टीमलीज) के लिए काम करना आसान बना रहे हैं। हालाँकि, गिग वर्कर्स के अनिश्चित काम के घंटों के कारण उनके लाभों का हिसाब रखना मुश्किल हो सकता है, लेकिन सरकार का ई-श्रम डेटाबेस इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।









