
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर शिकायत दर्ज कराने का अधिकार अब किसी भी व्यक्ति को मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम आदेश में स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 में शिकायतकर्ता की पात्रता को लेकर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है। इसका मतलब है कि ऐसे मामलों में शिकायत करने के लिए किसी विशेष अधिकारी या पदाधिकारी का होना जरूरी नहीं है। यह फैसला आए दिन बढ़ते सार्वजनिक संपत्ति से जुड़े अपराधों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया को सशक्त बनाने वाला माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 18 नवंबर 2025 को आजमगढ़ के एक मामले में यह निर्णायक आदेश दिया। इसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ग्राम प्रधान द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर को चुनौती दी थी और कहा था कि ग्राम प्रधान को शिकायत दर्ज कराने का अधिकार नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस आदेश को रद्द करते हुए स्पष्ट किया कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह ग्राम प्रधान हो या सामान्य नागरिक, शिकायत दर्ज करा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 में शिकायतकर्ता की पात्रता पर कोई विशेष रोक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट द्वारा यात्रा योग्यता का आधार लगाना गलत था और अभियोजन की प्रक्रिया सही है.
कानून के प्रावधान और उनका महत्व
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 के तहत सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना एक गंभीर अपराध है, जिसमें जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। अधिनियम का उद्देश्य सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना और इसके संरक्षण में सहायता प्रदान करना है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी बताया कि इस अधिनियम के साथ अन्य संबंधित कानूनों में भी शिकायतकर्ता की पात्रता सीमित नहीं की गई है। इसलिए किसी भी नागरिक को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले मामलों में कानूनी कार्रवाई के लिए शिकायत दर्ज कराए.
मामले की पृष्ठभूमि
आजमगढ़ के इस मामले में ग्राम प्रधान ने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले अभियुक्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। अभियुक्तों ने इसके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की, जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि ग्राम प्रधान को यह अधिकार नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस आदेश को खारिज करते हुए कहा कि यूपी रेवेन्यू कोड की धाराएं दीवानी प्रकृति की हैं और वे इस संदर्भ में लागू नहीं होतीं, जहां अपराध की शिकायत दर्ज कराई जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अपराध सत्तावाली संपत्ति के संरक्षण के लिए किसी भी व्यक्ति की शिकायत के प्रति सशक्तता प्रदान करता है.
क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?
यह फैसला एक मिसाल साबित होगा क्योंकि इससे सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने में अब कानूनी बाधाएं कम होंगी। पहले शिकायतकर्ता की पात्रता विवादित होती थी और इस वजह से कई अपराध बिना कार्रवाई के रह जाते थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आम जनता को यह भरोसा मिलेगा कि वह सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा में अपना कर्तव्य निभा सकते हैं और न्याय के लिए आगे आ सकते हैं। इससे सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा और समाज में जागरूकता बढ़ेगी, जो देश के स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण के लिए जरूरी है।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि कानून की व्याख्या समाज के हित में होनी चाहिए और जनता की भागीदारी सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा में आवश्यक है। अतः किसी भी व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामलों में शिकायत दर्ज कराना अब कानूनी रूप से मान्य और समर्थ होगा.









