
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में जन्म प्रमाण पत्र जारी करने की वर्तमान व्यवस्था को ‘अव्यवस्थित’ (Mess) बताते हुए कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य में कोई भी व्यक्ति, कहीं से भी और अपनी पसंद की तारीख का जन्म प्रमाण पत्र बनवा सकता है। न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को विस्तृत हलफनामा दाखिल करने और इस विसंगति को सुधारने के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी देने का निर्देश दिया है।
दोहरे जन्म प्रमाण पत्र का मामला
यह मामला याचिकाकर्ता शिवांकी से जुड़ा है। सुनवाई के दौरान, UIDAI के क्षेत्रीय कार्यालय, लखनऊ के उप निदेशक ने कुछ दस्तावेज़ पेश किए। इन दस्तावेज़ों में याचिकाकर्ता के दो अलग-अलग जन्म प्रमाण पत्र संलग्न थे, जो अलग-अलग स्थानों से जारी किए गए थे और जिनमें उनकी जन्म तिथि भी भिन्न थी। यह विरोधाभास कानूनी कार्यवाही का मुख्य आधार बन गया है।
- याचिकाकर्ता की जन्मतिथि को लेकर दो अलग-अलग प्रमाण पत्रों में विरोधाभास पाया गया है। पहला प्रमाण पत्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) मनौता द्वारा 21.08.2020 को जारी किया गया था, जिसमें जन्मतिथि 10.12.2007 दर्ज है।
- दूसरा प्रमाण पत्र ग्राम पंचायत हर सिंहपुर द्वारा 14.11.2022 को जारी किया गया, जिसमें जन्मतिथि 01.01.2005 दिखाई गई है, जिससे दोनों रिकॉर्ड में बड़ा अंतर सामने आता है।
सरकारी सिस्टम की विफलता पर कोर्ट सख्त
कोर्ट ने एक ही व्यक्ति के दो अलग-अलग सरकारी प्रमाण पत्रों में अलग जन्म तिथियाँ देखकर सिस्टम की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पीठ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि हमारा सरकारी सिस्टम पूरी तरह से विफल हो चुका है, जिससे नागरिकों के दस्तावेज़ों की सत्यता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है।
फर्जी जन्म प्रमाण पत्र पर कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
कोर्ट ने फर्जी जन्म प्रमाण पत्रों की आसान उपलब्धता पर गहरी चिंता व्यक्त की है, इसे एक बड़ी अव्यवस्था (Mess) बताया है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि ऐसा लगता है जैसे कोई भी व्यक्ति राज्य में कहीं से भी, अपनी मनमर्ज़ी की तारीख वाला जन्म प्रमाण पत्र आसानी से बनवा सकता है। कोर्ट के अनुसार, यह स्थिति हर स्तर पर मौजूद बेईमानी को दर्शाती है और चिंता का विषय है क्योंकि ऐसे फर्जी दस्तावेज़ों का उपयोग आपराधिक मुकदमों में साक्ष्य के तौर पर भी किया जा सकता है।









