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कोर्ट ने किरायेदार पर लगाया 50,000 रुपये जुर्माना, कहा मकान मालिक का बेदखली का अधिकार नहीं छीना जा सकता, 85 साल से था कब्जा

दिल्ली हाईकोर्ट ने 85 साल से दुकान पर काबिज किरायेदार की याचिका खारिज करते हुए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मकान मालिक की वास्तविक जरूरत (bona fide need) के अधिकार को किसी भी समझौते से खत्म नहीं किया जा सकता। यह फैसला मकान मालिकों के संपत्ति अधिकारों को मजबूत करता है।

By Pinki Negi

कोर्ट ने किरायेदार पर लगाया 50,000 रुपये जुर्माना, कहा मकान मालिक का बेदखली का अधिकार नहीं छीना जा सकता, 85 साल से था कब्जा

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसने न केवल दिल्ली के रियल एस्टेट बाजार को हिला दिया है, बल्कि मकान मालिकों के अधिकारों को भी नया जोश दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने एक ऐसे किरायेदार की याचिका खारिज कर दी जो लगभग 85 साल से एक दुकान पर काबिज था। इसके साथ ही कोर्ट ने उस पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह फैसला न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने सुनाया और इसके जरिए दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 14(1)(e) की व्याख्या को स्पष्ट किया गया है।

किरायेदार की याचिका और जुर्माना

मामले में किरायेदार ने एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसमें वह अपनी दुकान पर काबिज रहने का दावा कर रहा था। लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि किरायेदार की लंबी अवधि की कब्जेदारी के बावजूद, मकान मालिक के वास्तविक ज़रूरत (bona fide need) के अधिकार को नहीं छीना जा सकता। इस फैसले के साथ किरायेदार पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया, जो इस बात का संकेत है कि कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है।

मकान मालिक के अधिकार की रक्षा

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 14(1)(e) के तहत मकान मालिक को अपनी संपत्ति को वास्तविक ज़रूरत के लिए वापस लेने का अधिकार हमेशा बना रहता है। चाहे किरायेदार कितने भी सालों से उस संपत्ति पर काबिज हो, लेकिन यदि मकान मालिक को व्यक्तिगत या व्यावसायिक उपयोग के लिए उसकी वास्तविक ज़रूरत हो, तो उसे संपत्ति खाली करनी होगी। इस फैसले से मकान मालिकों को यह आश्वासन मिला है कि उनके अधिकार को कानून हमेशा सुरक्षित रखेगा।

समझौते की सीमा

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किरायेदारी समझौते में कोई भी शर्त जो मकान मालिक को बेदखली का मुकदमा दायर करने से रोकती है, कानूनी रूप से मान्य नहीं होगी। इसका मतलब है कि अगर किरायेदार और मकान मालिक के बीच कोई ऐसा समझौता हो जिसमें मकान मालिक को बेदखली का अधिकार नहीं दिया गया है, तो वह समझौता कानूनी तौर पर बेकार होगा। यह फैसला निश्चित रूप से उन मकान मालिकों के लिए राहत की खबर है जो अपनी संपत्ति को वापस लेना चाहते हैं, लेकिन किरायेदार के लंबे समय तक काबिज होने के कारण असमर्थ हो जाते हैं।

फैसले का सामाजिक और कानूनी महत्व

इस फैसले का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह स्पष्ट करता है कि कानून मकान मालिक के संपत्ति के अधिकार को प्राथमिकता देता है। चाहे किरायेदार कितने भी सालों से संपत्ति पर काबिज हो, लेकिन यदि मकान मालिक को वास्तविक ज़रूरत है, तो उसे संपत्ति खाली करनी होगी। यह फैसला न केवल दिल्ली बल्कि पूरे देश के मकान मालिकों के लिए एक नया मार्गदर्शन बन गया है। इससे भविष्य में ऐसे मामलों में मकान मालिकों को अपने अधिकारों की रक्षा करने में आसानी होगी।

Author
Pinki Negi
GyanOK में पिंकी नेगी बतौर न्यूज एडिटर कार्यरत हैं। पत्रकारिता में उन्हें 7 वर्षों से भी ज़्यादा का अनुभव है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साल 2018 में NVSHQ से की थी, जहाँ उन्होंने शुरुआत में एजुकेशन डेस्क संभाला। इस दौरान पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए अनुभव लेने के बाद अमर उजाला में अपनी सेवाएं दी। बाद में, वे नेशनल ब्यूरो से जुड़ गईं और संसद से लेकर राजनीति और डिफेंस जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर रिपोर्टिंग की। पिंकी नेगी ने साल 2024 में GyanOK जॉइन किया और तब से GyanOK टीम का हिस्सा हैं।

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