
NEET की अनिवार्यता को लेकर चल रही लड़ाई में एक बड़ा मोड़ आ गया है। तमिलनाडु सरकार ने राष्ट्रपति के एंटी-NEET बिल पर रोक लगाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। राज्य सरकार ने राष्ट्रपति के इस फैसले को ‘कानूनी और संवैधानिक रूप से गलत’ बताते हुए कोर्ट से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने की अपील की है।
तमिलनाडु का एंटी-नीट बिल क्या है ?
यह पूरा विवाद ‘तमिलनाडु एडमिशन टू अंडग्रेजुएट मेजिकल कोर्स बिल 2021’ नामक एंटी-नीट बिल से जुड़ा है। यदि इस बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाती है, तो तमिलनाडु में नीट परीक्षा रद्द हो जाएगी। इसके बाद, एमबीबीएस, बीडीएस सहित अन्य मेडिकल कोर्स में नीट के बजाय 12वीं कक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर दाखिला लेना संभव हो जाएगा।
तमिलनाडु सरकार NEET UG के खिलाफ
तमिलनाडु सरकार अंडरग्रेजुएट मेडिकल कोर्स में दाखिले के लिए होने वाली NEET UG परीक्षा के सख्त खिलाफ है और लंबे समय से इसे रद्द करने की मांग कर रही है। राज्य विधानसभा ने साल 2021 में ही एक नीट विरोधी बिल (Anti-NEET Bill) पास कर दिया था। इस बिल को अब राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेज दिया गया है।
राष्ट्रपति ने रोक लगाई थी एंटी-नीट बिल पर
नीट की अनिवार्यता खत्म करने के लिए लाए गए तमिलनाडु सरकार के एंटी-नीट बिल को राष्ट्रपति ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। केंद्र सरकार की जांच के बाद गृह मंत्रालय ने इस फैसले की जानकारी दी, जिसे राज्यपाल ने राज्य सरकार को भेज दिया। इस वजह से बिल पास होने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से बंद हो गई। अब राज्य सरकार ने राष्ट्रपति के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
NEET विरोधी विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
तमिलनाडु सरकार का मानना है कि नीट परीक्षा ग्रामीण और सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए नुकसानदेह है, जिसके चलते राज्य विधानसभा ने यह विधेयक सर्वसम्मति से पारित किया था। अब राष्ट्रपति द्वारा इस NEET विरोधी विधेयक को मंजूरी देने से मना करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। यह याचिका एडवोकेट मीशा रोटागी मोहता ने दायर की है, जिसकी पैरवी सीनियर एडवोकेट पी. विल्सन कर रहे हैं।
विधेयक को मंजूरी न मिलने पर सरकार की कोर्ट से अपील
सरकार ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह विधेयक को मंजूरी न देने के फैसले को असंवैधानिक घोषित करे और इस पर फिर से विचार करे। याचिका में कहा गया है कि यह फैसला मनमाना है, क्योंकि इसने NEET के असर पर राज्य के आंकड़ों को नज़रअंदाज़ किया है और राज्य विधानसभाओं की शक्ति को कमज़ोर किया है। सरकार का तर्क है कि राष्ट्रपति का यह कदम संघवाद और विधायी अधिकारों से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है।









