
अक्सर लोग जमीन खरीदते समय लैंड रजिस्ट्री के साथ अक्सर लोग Mutation यानी दाखिल-खारिज की प्रक्रिया को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता की यह उनकी सबसे बड़ी गलती हो सकती है। बता दें, भारत सरकार ने संपत्ति स्वामित्व (Property Ownership) से जुड़े कानूनों में एक बड़ा सुधार किया है। जिससे अब किसी भी खरीदार के लिए केवल जमीन की रजिस्ट्री कराना ही मालिकाना हक पाने के लिए काफी नहीं होगा। नई व्यवस्था के तहत अब म्यूटेशन यानी दाखिल-खारिज भी जरुरी है।
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क्या बदला है नए नियमों में?
पहले ज्यादातर लोग रजिस्ट्री कराने के बाद म्यूटेशन को अक्सर टाल देते थे, लेकिन अब ऐसा करना जोखिम भरा हो सकता है। 2025 से लागू नए नियम साफ कहते हैं कि अब जब तक आपका नाम सरकारी राजस्व रिकॉर्ड (Revenue Record) में अपडेट नहीं होता, तब तक ओनरशिप अधूरी मानी जाएगी।
Mutation क्यों है इतना जरूरी?
म्यूटेशन वह प्रक्रिया है जिसमें सरकारी रिकॉर्ड में संपत्ति का स्वामित्व पुराने मालिक से हटकर नए खरीदार के नाम पर दर्ज होता है। इसे आप लैंड रिकॉर्ड अपडेट भी कह सकते हैं। यदि आप म्यूटेशन नहीं करवाते हैं तो आपको निम्नलिखित दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
- सरकारी रिकॉर्ड में पुराना मालिक ही ऑनर माना जाता रहेगा
- भविष्य में संपत्ति बेचने में दिक्कत
- Bank Loan, Home Loan या सब्सिडी लेने में समस्या
- पूर्व मालिक या उसके वारिस झूठा दावा कर सकते हैं
- Legal Dispute की स्थिति में आपका ओनरशिप कमजोर पड़ सकता है
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सुप्रीम कोर्ट की क्या भूमिका है?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ किया है कि सिर्फ म्यूटेशन एंट्री से मालिकाना हक नहीं मिलता। रजिस्ट्री या वैध वसीयत असली स्वामित्व का आधार है। हालाँकि म्यूटेशन प्रशासनिक और टैक्स संबंधित प्रक्रियाओं के लिए जरूरी है, जिसके चलते सरकार ने इसी आधार पर म्यूटेशन को अब रजिस्ट्री जितना ही महत्वपूर्ण बना दिया है।
ये बदलाव क्यों लागू किए गए?
भारत में अधिकतर भूमि विवाद इसी वजह से होते हैं क्योंकि उनका या तो म्यूटेशन अधूरा छूट जाता है या रिकॉर्ड में पुराने नाम बने रहते हैं। इसके अलावा कई बार खरीदार और वास्तविक स्वामी में भी मिसमैच हो जाता है। ऐसे में नए नियम इस समस्या को खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम माने जा रहे हैं।
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