क्या आपको पता है हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भारत में संपत्ति एवं जमीन से जुड़े क़ानूनी ढांचों को लेकर एक बहुत ही कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट का कहना है कि देश आजाद कब का हो गया है लेकिन यहाँ अभी भी अंग्रेजों के समय के पुराने ही कानून चल रहे हैं जिससे समस्या बढ़ती ही जा रही है। जी हाँ इन कानून की वजह से जटिलता, देरी और कोर्ट-कचहरी के मामलों की संख्या घटने के बजाय और बढ़ती जा रही है। ये पूरी समस्या तब तक खत्म नहीं होंगे जब तक नया कानून नहीं लाया जाएगा। इसके लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लेना भी बहुत जरुरी होगा।

ब्लॉकचेन तकनीक और क़ानूनी सुधार की राह
इस बात पर गंभीरता दिखाते हुए सभी द्वारा अपने अपने राय दिए गए हैं। इनमे ही जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जोयमाल्या बागची की बेंच ने राय दी है कि सरकार को ब्लॉकचेन जैसी मॉर्डन तकनीक का इस्तेमाल करना जरूरी है, इससे भूमि के रिकॉर्ड में सुधार आएगा।
इस पूरे मामले पर सही से अध्ययन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने विधि आयोग की आदेश दिया है। फिर आयोग द्वारा केंद्र-राज्य सरकारों, विशेषज्ञों और अन्य पक्षों से बातचीत करके एक दूसरे की सलाह लेगा, इसके बाद रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
300 साल पुराने कानून
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आज भी हमारे देश में सम्पति खरीदने और बेचने की प्रणाली पुराने कानून पर टिकी हुई है जो कि 300 साल पुराने हैं। इन मामलों में विवाद इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि यह कानून मालिकाना हक और पंजीकरण को स्पष्ट नहीं कर पाते हैं। आज के समय में जो जमीन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया चल रही है वह काफी जटिल है।
पुराने कानून के कारण बढ़ रहे भूमि विवाद
- बता दें देश में लगभग 66% नागरिक विवाद ऐसे हैं की संपत्ति से जुड़े हुए हैं।
- देश का पुराना कानून दोषपूर्ण सिस्टम बनाता है, इस वजह से क़ानूनी ढांचा कई समस्याओं से भरा है जो निम्नलिखित हैं- नकली कागजात बनना, अतिक्रमण, काम में देरी, बिचौलिया, हर राज्य में अलग अलग नियम बनाए गए हैं।
- बिना बार के देरी और समय बर्बाद हो रहा है क्योंकि सब रजिस्ट्रार्ट दफ्तरों में काम करने का तरीका काफी बोझयुक्त होता है।
डिजिटल रिकॉर्ड के साथ नया कानून भी बने
सरकार द्वारा दो बड़े डिजिटल प्रयास किए गए हैं जो कि DILRMO और NGDRS है, जिनकी सुप्रीम कोर्ट ने काफी प्रसंशा की है। लेकिन कोर्ट का कहना है, कि सिर्फ कागजों को डिजिटल बनाने से कुछ नहीं होगा। अगर पुराने पड़े हुए रिकॉर्ड में पहले से ही गलतियां दर्ज हैं तो डिजिटल करने पर वे गलतियां और भी उभरकर आएंगी और बड़ी होंगी।
पुराने कानून को बदलना है जरुरी!
कोर्ट ने अपना मत देते हुए और सलाह दी है कि केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों को मिलकर इन पुराने क़ानूनों को बदलना चाहिए या फिर इनमे सुधार करना बहुत जरुरी है जिससे समस्या सुलझ सके।
- सम्पति हस्तांतरण अधिनियम (1882)
- रजिस्ट्रेशन अधिनियम (1908)
- भारतीय स्टाम्प अधिनियम (1899)
- साक्ष्य अधिनियम (1872)
- सुचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000)








