
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम से जुड़े एक मामले में बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी दलित व्यक्ति को ‘हरामी’ (Bastard) कहना जाति सूचक गाली नहीं है, और इसलिए इस आधार पर SC/ST एक्ट के तहत कोई मामला नहीं बनता। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने यह फ़ैसला सुनाया और इस टिप्पणी के साथ आरोपी को अंतरिम ज़मानत दे दी, साथ ही पुलिस के रवैये पर भी हैरानी जताई।
क्या था मामला ?
यह घटना केरल की है, जहाँ 16 अप्रैल को पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई गई थी। दर्ज की गई FIR के अनुसार, आरोपियों ने शिकायतकर्ता को सड़क पर रोककर धमकाया और उन पर चाकू से हमला किया। आरोप है कि हमला शुरू करने से पहले आरोपी ने शिकायतकर्ता को ‘हरामी’ कहकर अपमानित किया। इस हमले से अपना बचाव करते समय शिकायतकर्ता के हाथ में चोटें भी आई हैं।
‘हरामी’ शब्द पर SC/ST एक्ट और अग्रिम ज़मानत
शुरुआती एफआईआर (FIR) के बाद, पुलिस ने इस मामले में एससी/एसटी (SC/ST) एक्ट की धाराएं भी जोड़ दीं। पुलिस का कहना था कि ‘हरामी’ शब्द का प्रयोग जाति के आधार पर अपमान करने के लिए किया गया था। एससी/एसटी एक्ट लगने के बाद, 55 वर्षीय आरोपी ने अग्रिम जमानत के लिए केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर की। आरोपी ने दलील दी कि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और शिकायत में कोई आधार न होने के बावजूद यह धारा गलत लगाई गई है। हालांकि, हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक है।
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को फटकारा
जब आरोपी को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली, तो उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट इस बात से हैरान था कि पुलिस ने केवल ‘हरामी’ शब्द के इस्तेमाल पर SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया। कोर्ट ने कहा कि जब शिकायत में जातिगत अपमान का कोई आरोप नहीं था, तब भी पुलिस ने “अति उत्साह” में ये धाराएँ जोड़ दीं।
कोर्ट ने पुलिस के इस रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह शब्द जाति-आधारित गाली नहीं है। कोर्ट ने माना कि सिर्फ SC/ST एक्ट की धाराएँ लगने के कारण ही हाईकोर्ट ने जमानत नहीं दी थी, इसलिए शीर्ष अदालत ने आरोपी को अंतरिम जमानत दे दी।








