Tags

इस समाज में भाई-बहन की होती है शादी, मना करने पर लगता है भारी जुर्माना, पानी को साक्षी मानकर होता है विवाह

भारत के एक अनोखे समाज की कहानी, जहाँ भाई-बहन आपस में शादी करते हैं और मना करने पर भारी जुर्माना लगता है! जानिए क्यों यहाँ 'पानी' को विवाह का साक्षी माना जाता है और इस अजीबोगरीब परंपरा के पीछे का कारण क्या है, जिसने इसे समाज की अनिवार्य पहचान बना दिया है।

By Pinki Negi

इस समाज में भाई-बहन की होती है शादी, मना करने पर लगता है भारी जुर्माना, पानी को साक्षी मानकर होता है विवाह
Unique Traditions

भारत की कुछ ऐसी परंपराएं है, जो हमें आश्चर्यचकित करती हैं, ये परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही हैं और गौरव का विषय हैं। इसी तरह, कुछ रिवाज़ सवाल भी खड़े करते हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र का धुरवा आदिवासी समाज भी अपनी अद्वितीय विवाह परंपरा के कारण चर्चा में रहता है, जो इस क्षेत्र की गहरी जड़ों वाली रीतियों का एक उदाहरण है।

धुरवा समाज की अनोखी शादी की रस्में

भारत में हर धर्म और समाज की अपनी पुरानी मान्यताएं और परम्पराएं हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में रहने वाला धुरवा आदिवासी समाज भी अपनी खास परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है। इस समाज में शादी के अपने ऐसे अनोखे तरीके हैं, जिन्हें जानकर लोग अक्सर हैरान हो जाते हैं। जहाँ ज़्यादातर समाजों में भाई-बहन के रिश्ते को पवित्र माना जाता है, वहीं धुरवा समाज में यह रिश्ता शादी का आधार बन जाता है। इस समाज में ममेरे, चचेरे और फुफेरे भाई-बहनों के बीच विवाह कराया जाता है। धुरवा समुदाय का मानना है कि ऐसा करने से उनके समाज में एकता बनी रहती है और किसी अनजान परिवार से विवाद होने की गुंजाइश कम हो जाती है।

नियम तोड़ने पर लगता है जुर्माना

यह सदियों पुरानी सामाजिक परंपरा है, जिसे मानना बहुत ज़रूरी समझा जाता है। हैरान करने वाली बात यह है कि अगर कोई युवा इसे नहीं मानता है, तो समाज इसे नियम तोड़ना मानता है। ऐसे में, उस व्यक्ति से जुर्माना भी लिया जाता है ताकि यह रीति-रिवाज कमजोर न पड़े और चलता रहे।

पानी को साक्षी मानकर होती है शादी

धुरवा समाज की शादियों की सबसे खास बात यह है कि वे अग्नि के बजाय पानी को विवाह का साक्षी मानते हैं। विवाह की रस्मों के समय किसी नदी या जल के स्रोत का पानी दूल्हा-दुल्हन पर छिड़का जाता है। यह परंपरा उनकी गहरी प्रकृति आस्था को दर्शाती है। उनका मानना है कि पानी ही जीवन का आधार है, इसलिए विवाह के पवित्र रिश्ते में इसी को साक्षी या गवाह होना चाहिए।

दहेज प्रथा पर प्रतिबंधित

धुरवा समुदाय ने दहेज प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। उनका मानना है कि दहेज से समाज में असमानता और दिखावा बढ़ता है। यही कारण है कि इस समुदाय में शादियाँ बहुत सादगी से, बिना किसी शोर-शराबे और अधिक खर्च के की जाती हैं। यह सरल तरीका समाज में बराबरी और आर्थिक सादगी बनाए रखने का एक उदाहरण है।

कानूनी तौर पर लड़के की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की की 18 साल तय है, इसके बावजूद बाल विवाह की प्रथा आज भी समाज में एक बड़ी चिंता का विषय है। कई जगहों पर लोग परंपरा के नाम पर कम उम्र के बच्चों की शादी करके इस कुप्रथा को अभी भी जारी रखे हुए हैं, जो कि कानून का उल्लंघन है। परंपराओं को लेकर समाज में अलग-अलग राय बन गई है। जहाँ नई पीढ़ी इन रीति-रिवाजों को समय के साथ बदलने या सुधारने की बात करती है, वहीं बुजुर्ग लोग इन्हें अपनी संस्कृति और पहचान का एक ज़रूरी हिस्सा मानकर इनका विरोध करते हैं।

Author
Pinki Negi
GyanOK में पिंकी नेगी बतौर न्यूज एडिटर कार्यरत हैं। पत्रकारिता में उन्हें 7 वर्षों से भी ज़्यादा का अनुभव है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साल 2018 में NVSHQ से की थी, जहाँ उन्होंने शुरुआत में एजुकेशन डेस्क संभाला। इस दौरान पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए अनुभव लेने के बाद अमर उजाला में अपनी सेवाएं दी। बाद में, वे नेशनल ब्यूरो से जुड़ गईं और संसद से लेकर राजनीति और डिफेंस जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर रिपोर्टिंग की। पिंकी नेगी ने साल 2024 में GyanOK जॉइन किया और तब से GyanOK टीम का हिस्सा हैं।

हमारे Whatsaap ग्रुप से जुड़ें