
22 अक्टूबर को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने IT नियमों में बदलाव का ड्राफ्ट जारी किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य डीपफेक और AI द्वारा बनाए गए कंटेंट को लेबल करना और यह पता लगाना है कि यह कहाँ से आया है। इन बदलावों के बाद यह साफ-साफ मार्क होगा कि कंटेंट इंसानों का नहीं, बल्कि AI का बनाया हुआ है, जिससे गलत सूचना और चुनावी धांधली को रोकने में मदद मिलेगी। मंत्रालय के अनुसार, इंटरनेट को सुरक्षित और भरोसेमंद बनाने के लिए यह कदम आवश्यक है और उसने सभी संबंधित पक्षों से 6 नवंबर तक ईमेल द्वारा इस ड्राफ्ट पर सुझाव मांगे हैं।
हर AI कंटेंट पर लगाना होगा लेबल
नए नियम 3(3) के अनुसार, जो भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म AI द्वारा बनाई गई सामग्री (जैसे ‘सिंथेटिकली जेनरेटेड इंफॉर्मेशन’) बनाने की अनुमति देंगे, उन्हें उस हर सामग्री पर एक साफ़ लेबल लगाना होगा। इसके साथ ही, एक स्थायी और अलग पहचान देने वाला मेटाडेटा या आइडेंटिफायर भी जोड़ना ज़रूरी होगा, जिसे बदला, छिपाया या मिटाया न जा सके।
यह लेबल विजुअल कंटेंट में कम से कम 10% जगह घेरेगा या ऑडियो कंटेंट में शुरुआती 10% समय तक सुनाई देगा। इन प्लेटफॉर्म्स को ऐसी तकनीकी व्यवस्था भी करनी होगी जिससे अपलोड करने से पहले ही यह पता चल जाए कि कंटेंट AI से बना है या नहीं।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की नई जिम्मेदारी
यह नई जिम्मेदारी उन बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लागू होगी, जिनके 50 लाख से ज़्यादा यूज़र्स हैं और जो IT नियमों के तहत ‘सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज’ (SSMIs) कहलाते हैं। इसमें फेसबुक, यूट्यूब और स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म शामिल हैं, जिन्हें कंटेंट की सही लेबलिंग, मेटाडेटा टैगिंग और विजिबिलिटी के मानकों का पालन करना होगा।
6 नवंबर तक लोगों से ली जाएगी राय
यह ड्राफ्ट 22 अक्टूबर 2025 को जारी किया गया है और MeitY (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) 6 नवंबर तक इस पर लोगों से राय (फीडबैक) लेगी। इसके बाद अंतिम नियम बनाए जाएंगे, जिसकी सही तारीख अभी तय नहीं है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि डीपफेक के बढ़ते मामलों के कारण ये नए नियम कुछ ही महीनों में लागू हो सकते हैं।
यूज़र्स को मिलेगी सही जानकारी
अब यूज़र्स के लिए यह अच्छा है क्योंकि वे आसानी से फेक कंटेंट पहचान सकेंगे और गलत जानकारी कम फैलेगी। हालांकि, कंटेंट बनाने वालों (क्रिएटर्स) को अब लेबल लगाने जैसे कुछ अतिरिक्त काम करने होंगे। इंडस्ट्री के लिए चुनौती यह है कि उन्हें मेटाडेटा और वेरिफिकेशन के लिए टेक्नोलॉजी में निवेश करना होगा, जिससे उनका काम थोड़ा महंगा हो सकता है।