
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि जमीन के मालिक को उसकी ली गयी भूमि के लिए सबसे ज्यादा बाजार मूल्य के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए। इस आदेश के तहत, कोर्ट ने मिर्जापुर में एक बिजली के सब-स्टेशन के लिए ली गई जमीन का मुआवजा 26,624 रुपये प्रति बीघा से बढ़ाकर अब 17,062 रुपये प्रति बिस्वा कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति संदीप जैन ने रूप नारायण और अन्य की याचिका पर सुनाया है।
क्या था पूरा मामला
रूप नारायण जो की मिर्ज़ापुर के रहने वाले है, उनकी नटवा गाँव में जमीन थी, इसमें लगभग सवा छह बीघा (6 बीघा 2 बिस्वा) ज़मीन का अधिग्रहण उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड ने 220 केवी सब-स्टेशन बनाने के लिए किया था। ज़िला कलेक्टर ने इस ज़मीन के लिए 26,624 रुपये प्रति बीघा के हिसाब से मुआवज़ा तय किया था, जिसे बाद में संदर्भ न्यायालय (Reference Court) ने भी सही माना।
जमीन मालिक ने अधिक मुआवजे की मांग की
एक भूमि मालिक ने अपनी ज़मीन पर मौजूद एक कुएं, एक घर, और चार पेड़ों (तीन आम, एक आंवला) के लिए दिए गए मुआवजे की रकम को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्हें कुएं के लिए ₹3,076, घर के लिए ₹13,600 और पेड़ों के लिए ₹10,680 का मुआवज़ा मिला था। भूस्वामी ने इस रकम को बहुत कम बताते हुए निचली अदालत (विशेष न्यायाधीश, मिर्ज़ापुर) के फ़ैसले को चुनौती दी है।
भूस्वामी के वकील का तर्क है कि उन्हें ज़मीन के सबसे ऊंचे बाज़ार मूल्य के आधार पर अधिक मुआवज़ा मिलना चाहिए, जिसके लिए उन्होंने बिक्री विलेख (Sale Deed) का हवाला दिया है।
कोर्ट का फैसला
न्यायालय ने अपने फ़ैसले में मेहरावल खेवाजी ट्रस्ट और मनोहर एवं अन्य मामलों में दिए गए सिद्धांत को फिर से दोहराया है। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी ज़मीन के अधिग्रहण के समय उसके एक से अधिक विक्रय विलेख (सेल डीड) मौजूद हैं, तो भूस्वामी को अधिग्रहण की तारीख के आसपास हुए उन सभी सौदों में दर्शाए गए सबसे अधिक मूल्य के अनुसार मुआवज़ा पाने का अधिकार होगा।