उत्तराखंड के कुछ गांवों में अब माहौल बदल रहा है. यहां अब पंचायतों में वही लोग पहुंच रहे हैं जिनके पास सालों का अनुशासन, ईमानदारी और देश सेवा का अनुभव है. न कोई राजनीति का खेल, न कोई दिखावा बस सीधा और साफ इरादा अपने गांव को आगे ले जाना.

आईपीएस नहीं बनीं आयोग की अध्यक्ष, बन गईं गांव की प्रधान
रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी विमला गुंज्याल का नाम राज्य की सख्त और ईमानदार अफसरों में गिना जाता है. वह उत्तराखंड की पहली महिला आईजी जेल भी रह चुकी हैं. उनके लिए कोई बड़ी सरकारी पोस्ट मिलना मुश्किल नहीं था. लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. विमला गुंज्याल ने अपने गांव गूंजे का प्रधान बनने का फैसला किया. और वो भी बिना किसी विरोध के चुनी गईं.

देश की सेवा के बाद अब गांव की सेवा, कर्नल नेगी की मिसाल
कर्नल यशपाल सिंह नेगी का नाम अब सिर्फ सेना के इतिहास में नहीं, गांव बिरगणा के विकास की कहानी में भी जुड़ गया है. पौड़ी गढ़वाल के इस गांव में उन्हें भी बिना किसी विरोध के प्रधान चुना गया है.

30 साल तक देश की रक्षा करने के बाद उन्होंने आराम का जीवन नहीं चुना, बल्कि गांव की सूखी ज़मीन और ठंडी हवाओं को फिर से जिंदा करने की ठानी. उन्होंने अपनी पत्नी बीना जी के साथ मिलकर 45 नाली बंजर ज़मीन को जैविक खेती के खेतों में बदल दिया.
अब उनके खेतों में जौ, मंडवा, सरसों, चोलाई जैसी पारंपरिक फसलें लहलहाती हैं. साथ ही उन्होंने 70 से ज़्यादा अखरोट के पेड़ लगाए हैं, और आगे आड़ू, प्लम, खुमानी जैसे फलदार पेड़ भी उगाने की योजना है.
क्यों लौटे गांव? एक गीत ने दिखाई राह
कर्नल नेगी बताते हैं कि सेना में रहते हुए जब भी उनसे पूछा जाता कि रिटायरमेंट के बाद कहां रहेंगे, तो उनका जवाब साफ था गांव में. इसका सबसे बड़ा कारण था लोकप्रिय गायक नरेंद्र सिंह नेगी का वो गीत जिसमें एक व्यक्ति परदेश में अकेलेपन से जूझता है और पछताता है कि उसने गांव क्यों छोड़ा.
इस भावना ने कर्नल नेगी को झकझोर दिया और उन्होंने तय किया कि रिटायरमेंट के बाद गांव लौटकर वही मिट्टी संवारनी है जिसने उन्हें इस लायक बनाया.
सिर्फ खेती ही नहीं, शिक्षा और लोकल इकॉनमी की भी चिंता
प्रधान बनने के बाद उनका ध्यान सिर्फ खेतों तक ही नहीं है. गांव के स्कूलों को सुधारने और शिक्षा की स्थिति मजबूत करने के लिए भी वह मेहनत कर रहे हैं. उनका मानना है कि अगर अच्छी पढ़ाई गांव में ही मिले तो पलायन रुकेगा और बच्चे अपने घर-परिवार से जुड़े रहेंगे.
इसके अलावा, उन्होंने घर की मरम्मत और निर्माण में सिर्फ लोकल मजदूरों और सामान का उपयोग किया. वह कहते हैं, “अगर लोग गांव में मकान बनाएंगे और लोकल चीज़ें इस्तेमाल करेंगे तो स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा और गांव की इकॉनमी चलेगी.”
जब नेता नहीं, प्रेरणा बनते हैं लोग
कर्नल नेगी और विमला गुंज्याल जैसे लोग नेता नहीं, एक प्रेरणा हैं. इन्होंने साबित कर दिया कि बदलाव लाने के लिए बड़ी कुर्सी की ज़रूरत नहीं होती, बस बड़ी सोच और साफ नीयत होनी चाहिए.
अब देखना ये है कि इन गांवों की विकास यात्रा कितनी दूर तक जाएगी. लेकिन एक बात तय है यह शुरुआत उम्मीदों से भरी है.