
उत्तर प्रदेश में “Encounters” यानी मुठभेड़ों को लेकर पिछले कुछ सालों में बहुत चर्चा हुई है। खासकर जब से योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने हैं, राज्य में अपराधियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया गया है। सरकार ने साफ कहा है कि अपराध और अपराधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसी सोच के तहत पुलिस को खुली छूट दी गई है कि अगर कोई अपराधी कानून का उल्लंघन करे या पुलिस पर हमला करे, तो उस पर तुरंत कार्रवाई हो।
योगी सरकार के कार्यकाल में एनकाउंटर की संख्या
साल 2017 में जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, उन्होंने साफ किया था कि उत्तर प्रदेश में कानून का राज कायम होगा और अपराधियों को या तो जेल जाना होगा या अपनी जान गंवानी होगी। तब से अब तक यानी आठ साल के कार्यकाल में 8000 से ज्यादा एनकाउंटर हो चुके हैं। इस दौरान कई कुख्यात अपराधी मारे गए हैं, कुछ घायल हुए हैं और कई ने खुद पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है।
सरकार का कहना है कि ये सभी कार्रवाइयां कानूनी दायरे में की गई हैं और इसका मकसद जनता को सुरक्षित रखना है। वहीं कुछ संगठनों और लोगों का मानना है कि इस तरह की मुठभेड़ों में निर्दोष लोग भी मारे जा सकते हैं, इसलिए इसकी पारदर्शिता जरूरी है।
एनकाउंटर क्या होता है और ये कब किया जाता है?
एनकाउंटर उस स्थिति को कहा जाता है जब पुलिस और अपराधियों के बीच गोलीबारी होती है, और इसमें अपराधी मारा जाता है या घायल होता है। यह तब होता है जब अपराधी पुलिस की बात नहीं मानता, भागने की कोशिश करता है या हमला करता है।
भारत में मुठभेड़ों को लेकर कोई सीधा कानून नहीं है, लेकिन कुछ कानूनी प्रावधान और दिशा-निर्देश मौजूद हैं जिनका पालन करना जरूरी है।
सीआरपीसी की धारा 46 क्या कहती है?
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता यानी CRPC की धारा 46 के अनुसार, अगर कोई अपराधी पुलिस से भागने की कोशिश करता है और जानलेवा हमला करता है, तो पुलिस को आत्मरक्षा में बल प्रयोग करने का अधिकार होता है। अगर इस दौरान अपराधी की मौत हो जाती है, तो उसे एक्स्ट्रा जुडिशियल किलिंग कहा जा सकता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है।
अनुच्छेद 21 क्या है?
अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसका मतलब है कि किसी की जान तभी ली जा सकती है जब वह कानून के अनुसार हो, यानी बिना कोर्ट की प्रक्रिया के किसी को मारा नहीं जा सकता।
एनकाउंटर से जुड़े नियम और जांच प्रक्रिया
भारत में एनकाउंटर के बाद क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है, इस पर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं:
- जब भी पुलिस को अपराध से जुड़ी कोई सूचना मिलती है और उसके आधार पर कार्रवाई होती है, तो उसे रिकॉर्ड करना जरूरी होता है।
- अगर एनकाउंटर में किसी की मौत होती है, तो CRPC की धारा 157 के तहत FIR दर्ज करना और अदालत को सूचित करना अनिवार्य होता है।
- CRPC की धारा 176 के तहत उस एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट से जांच कराई जाती है।
- यदि अपराधी घायल होता है, तो मेडिकल ऑफिसर या मजिस्ट्रेट से उसका बयान और फिटनेस सर्टिफिकेट लिया जाता है।
- मारे गए व्यक्ति के परिवार को जल्द से जल्द सूचना देना अनिवार्य है।
- अगर पुलिस इन नियमों का पालन नहीं करती, तो परिवार अदालत में शिकायत दर्ज कर सकता है।
एनकाउंटर की सच्चाई और विवाद
एनकाउंटर को लेकर समाज में दो तरह की सोच है। एक पक्ष का कहना है कि ये जरूरी हैं क्योंकि इससे अपराध पर लगाम लगती है। खासकर जब अपराधी पुलिस पर गोली चलाते हैं या आम जनता के लिए खतरा बनते हैं।
वहीं दूसरा पक्ष मानता है कि ये कानून के खिलाफ हैं और इससे निर्दोष लोग भी मारे जा सकते हैं। इसलिए इन पर निगरानी होनी चाहिए और हर केस की निष्पक्ष जांच जरूरी है।