उत्तर प्रदेश सरकार ने तय किया है कि जिन प्राथमिक स्कूलों में 30 से कम बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें पास के दूसरे स्कूलों में मिला दिया जाएगा. इससे करीब 27,000 स्कूल बंद हो सकते हैं. सरकार के इस फैसले से प्रदेश के हज़ारों सरकारी स्कूलों पर ताला लगने का खतरा मंडरा रहा है. इस फैसले के खिलाफ टीचरों ने मोर्चा खोल दिया है.

सरकार का तर्क है कि इससे संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा, लेकिन शिक्षक और कई सामाजिक संगठन इसे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ मान रहे हैं.
शिक्षकों का हल्ला बोल, तीन चरणों में आंदोलन
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने इस फैसले का विरोध करने का ऐलान किया है. आंदोलन तीन चरणों में होगा:
- 3-4 जुलाई: शिक्षक विधायक और सांसदों को ज्ञापन देंगे और स्कूल बंदी का फैसला वापस लेने की मांग करेंगे.
- 6 जुलाई: सोशल मीडिया पर #SaveSchools जैसे हैशटैग से जागरूकता अभियान चलाया जाएगा.
- 8 जुलाई: सभी जिलों में बेसिक शिक्षा अधिकारी के दफ्तरों पर धरना होगा और मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा जाएगा.
संघ का कहना है कि स्कूल बंद करना शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) का उल्लंघन है और इससे न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी, बल्कि लाखों शिक्षकों और शिक्षा मित्रों की नौकरियों पर भी खतरा आएगा.
AAP का प्रदर्शन बच्चों के भविष्य से खिलवाड़
सरकारी स्कूलों को बंद करने के फैसले के विरोध में आज आम आदमी पार्टी (AAP) ने पूरे प्रदेश में प्रदर्शन किया. पार्टी के प्रवक्ता वंशराज दुबे ने कहा कि “योगी सरकार बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है. ये फैसला गरीब बच्चों की शिक्षा के अधिकार को छीनने जैसा है.”
आज दोपहर 2:30 बजे लखनऊ के कैसरबाग में AAP ने बड़ा प्रदर्शन किया. साथ ही, सभी जिलों में जिला मुख्यालयों पर भी धरना दिया गया.
क्या होगा आगे?
सरकार की तरफ से इस मुद्दे पर फिलहाल कोई जवाब नहीं आया है, लेकिन लगातार बढ़ते विरोध को देखते हुए अब सबकी निगाहें सरकार की अगली प्रतिक्रिया पर टिकी हैं.