
उत्तर प्रदेश में इन दिनों बिजली के बिल (Electricity Bills) को लेकर खूब चर्चा हो रही है। एक तरफ पावर कॉरपोरेशन कह रहा है कि उसे बिजली की दरों में 30% तक बढ़ोतरी करनी पड़ेगी, वहीं दूसरी ओर राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद का कहना है कि दरें तो कम होनी चाहिए, और वो चाहता है कि बिजली के रेट 40 से 45% तक घटा दिए जाएं।
अब सवाल उठता है कि कौन सही है? और जनता को क्या राहत मिलेगी या जेब पर और बोझ पड़ेगा?
किसने क्या कहा और क्यों?
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने नियामक आयोग में एक जनता प्रस्ताव दिया है जिसमें कहा गया है कि पावर कॉरपोरेशन का बिजली दर बढ़ाने का प्रस्ताव सही नहीं है और इसे खारिज कर देना चाहिए। परिषद ने यह भी सवाल उठाया है कि जब नोएडा पावर कंपनी पर उपभोक्ताओं का बकाया था और वहाँ तीन साल से बिजली दरों में 10% की कटौती की जा रही है, तो बाकी कंपनियों के लिए यह नियम क्यों लागू नहीं हो रहा?
परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि 2019 में आयोग ने खुद माना था कि बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं के 13,337 करोड़ रुपये बकाया हैं। और जब तक यह बकाया वसूला नहीं जाता, तब तक उस पर हर साल 12% ब्याज भी जोड़ा जाएगा। यह रकम अब बढ़कर 35,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुकी है। परिषद का कहना है कि जब इतनी बड़ी रकम बकाया है, तो बिजली महंगी करने की बजाय पहले यह पैसा वसूला जाए।
घाटा या गड़बड़ी – असली वजह क्या है?
उपभोक्ता परिषद ने आरोप लगाया है कि पावर कॉरपोरेशन ने उपभोक्ताओं से वसूली जाने वाली रकम को ही घाटा (Loss) बताकर पेश किया है। जबकि ऐसा कहीं नहीं होता, क्योंकि कंपनियां यह पैसा वसूलती हैं, और उस पर ब्याज भी लेती हैं।
परिषद ने यह भी बताया कि 10,000 करोड़ रुपये के बिजली बिलों की वसूली करने की जिम्मेदारी खुद पावर कॉरपोरेशन की है। लेकिन उन्होंने यह काम ठीक से नहीं किया। साथ ही, सौभाग्य योजना के तहत 54 लाख उपभोक्ताओं को मुफ्त कनेक्शन दे दिए गए, जिससे और गड़बड़ी हुई।
स्मार्ट मीटर और टेंडर का झोल
सरकार ने स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने के लिए 18,885 करोड़ रुपये की योजना मंजूर की थी। लेकिन बिजली कंपनियों ने 27,342 करोड़ रुपये के टेंडर जारी कर दिए। यानी जो काम कम पैसों में हो सकता था, उसके लिए ज्यादा खर्च की योजना बना ली गई। अब यह बोझ उपभोक्ताओं पर क्यों डाला जा रहा है?
इसके अलावा, विभाग में बाहर से लोगों को ज्यादा वेतन पर भर्ती किया गया जबकि विभाग के अपने इंजीनियर भी मौजूद थे। इससे भी खर्चा बढ़ा और घाटा ज्यादा दिखाया गया।
पावर कॉरपोरेशन का पक्ष
पावर कॉरपोरेशन ने उपभोक्ता परिषद के आरोपों को गलत बताया है। उनका कहना है कि उनकी बैलेंस शीट पूरी तरह पारदर्शी और सही है। उनके मुताबिक बिजली की मीटर रीडिंग और बिलिंग पूरी तरह ऑनलाइन सिस्टम से होती है, जिससे कोई फर्जीवाड़ा नहीं हो सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि उनके सारे आंकड़ों का सीएजी (CAG) ऑडिट होता है। यानी जो भी खर्च और आय दिखाई गई है, वो सरकारी जांच में साफ और सही साबित होती है।
राजनीतिक वादे और असली जिम्मेदारी
परिषद का कहना है कि पावर कॉरपोरेशन यह कहकर पीछे नहीं हट सकता कि सरकार अब मदद नहीं करेगी। क्योंकि सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में किसानों को मुफ्त बिजली और 100 यूनिट तक सिर्फ 3 रुपये प्रति यूनिट बिजली देने का वादा किया था। और विद्युत अधिनियम 2003 के अनुसार अगर कोई सरकार जनता से ऐसा वादा करती है, तो उसे उस वादे के लिए सब्सिडी देना जरूरी है।