मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाया है, जिससे कई पतियों को राहत मिल सकती है. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अगर किसी पति को अपनी पत्नी के एक्स्ट्रा अफेयर का शक है और उसने बिना इजाजत उसके मोबाइल से चैट्स या डाटा जुटाया है, तो भी पारिवारिक न्यायालय उस साक्ष्य को मान्य कर सकता है.

क्या है पूरा मामला?
यह मामला एक पति-पत्नी के बीच चल रहे विवाद का है, जिसमें पति को पत्नी पर शक था कि उसका किसी और से संबंध है. पति ने पत्नी के मोबाइल में एक थर्ड पार्टी ऐप इंस्टॉल किया, जिसकी मदद से वह पत्नी के व्हाट्सएप चैट्स की जानकारी हासिल करने लगा. पति ने इन चैट्स को कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया और दावा किया कि विवाह के बाद भी पत्नी किसी और से प्रेम संबंध में थी.
पत्नी ने जताई आपत्ति, कोर्ट में पहुंचा मामला
इस पर पत्नी ने आपत्ति जताई और कहा कि बिना उसकी अनुमति के मोबाइल डेटा निकालना निजता का उल्लंघन है. इस तर्क के आधार पर निचली अदालत में विवाद खड़ा हुआ, जिसे बाद में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. पत्नी के वकील ने यह भी कहा कि इस तरह से जुटाया गया सबूत अवैध है और इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.
हाईकोर्ट की दलील
हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आशीष श्रोती ने पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की धारा 14 का हवाला देते हुए कहा कि पारिवारिक मामलों में ऐसे साक्ष्य, जो सामान्य परिस्थितियों में स्वीकार न किए जाएं, उन्हें भी न्यायालय विशेष अनुमति से स्वीकार कर सकता है.
जज ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही ये साक्ष्य किसी की निजता का उल्लंघन कर के प्राप्त किए गए हों, लेकिन निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार की तुलना में निजता का अधिकार कमजोर पड़ सकता है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं होते, और अगर दो मौलिक अधिकारों के बीच टकराव हो तो न्यायाधीश को संतुलन बनाते हुए फैसला लेना होता है.
न्यायालय का संतुलित रुख
कोर्ट ने कहा कि सबूत स्वीकार करना इस बात की गारंटी नहीं है कि उसे हासिल करने का तरीका वैध है। इसका निर्णय बाद की सुनवाई में किया जाएगा. लेकिन वैवाहिक विवाद में सच्चाई तक पहुंचने के लिए न्यायालय को यह अधिकार है कि वह असामान्य तरीके से प्राप्त साक्ष्यों को भी स्वीकार करे.
हो रही इस फैसले की चिंता
हाईकोर्ट के इस फैसले पर चर्चा हो रही है अब तक ऐसे मामलों में जहां पति ने बिना सहमति पत्नी के निजी डेटा या चैट्स को कोर्ट में पेश किया, उन्हें खारिज किया जाता रहा है, अब ऐसे मामलों में ये फैसला मील का पत्थर साबित होगा.