
दिल्ली के नामी स्कूल Delhi Public School, Dwarka (डीपीएस द्वारका) में इन दिनों एक गंभीर विवाद ने शिक्षा व्यवस्था की संवेदनशीलता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। Delhi School Fees Row के इस मामले में फीस न चुकाने के कारण 32 छात्रों को स्कूल में घुसने से रोक दिया गया और स्कूल प्रशासन ने स्थिति को संभालने के लिए बाउंसर तक बुला लिए। इस कार्रवाई से अभिभावकों में आक्रोश है और पूरा मामला अब दिल्ली उच्च न्यायालय की दहलीज तक पहुंच गया है।
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बिना फीस चुकाए छात्रों की एंट्री पर रोक
यह घटना तब सामने आई जब 16 मई को स्कूल के बाहर चार पुरुष और दो महिला बाउंसर तैनात किए गए जिन्होंने गेट पर खड़े होकर छात्रों की पहचान की और उन्हें स्कूल में प्रवेश से रोक दिया। यह निर्णय शिक्षा निदेशालय (Directorate of Education – DoE) के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद लिया गया, जिसमें साफ तौर पर कहा गया था कि छात्रों को प्रवेश से न रोका जाए और फीस विवाद के आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए।
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स्कूल का दावा: बकाया फीस से हुआ भारी घाटा
स्कूल प्रशासन का दावा है कि इन 32 छात्रों पर ₹42 लाख से अधिक की फीस बकाया है और पिछले 10 वर्षों में उन्हें ₹31 करोड़ का वित्तीय नुकसान हुआ है। जबकि अभिभावकों की दलील है कि स्कूल ने मनमाने ढंग से फीस बढ़ाई और छात्रों को बिना किसी वैध प्रक्रिया के निष्कासित कर दिया गया। आरोप यह भी है कि छात्रों को दो घंटे तक स्कूल बस में बंद रखा गया और फिर उन्हें जबरन वापस भेज दिया गया।
अभिभावकों की आपत्ति और कानूनी कार्रवाई
अभिभावकों ने इस मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और मांग की है कि स्कूल के वित्तीय रिकॉर्ड की फॉरेंसिक जांच की जाए और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा ऑडिट कराया जाए। कोर्ट में सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
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