
बिहार में नई गाड़ी खरीदने वालों को रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में हो रही परेशानी अब एक गंभीर समस्या का रूप ले चुकी है। पूरे राज्य में 1 लाख 23 हजार से अधिक गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन लंबित है। राजधानी पटना में ही 13 हजार से अधिक वाहन मालिक ऑनर कार्ड और दस्तावेज़ सत्यापन के लिए परिवहन विभाग के कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। यह स्थिति न केवल सिस्टम की सुस्ती को उजागर करती है, बल्कि आम जनता के धैर्य की भी परीक्षा ले रही है।
डिजिटल पोर्टल पर दस्तावेज़ अपलोड में लापरवाही
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट इस समस्या की जड़ तक जाती है। जब कोई व्यक्ति नया वाहन खरीदता है, तो उसे कई ज़रूरी दस्तावेज़ प्राप्त होते हैं, जिनमें टैक्स स्लिप, मालिकाना हक के प्रमाणपत्र और बीमा दस्तावेज़ शामिल हैं। इन दस्तावेज़ों को राज्य के वाहन डिजिटल पोर्टल पर अपलोड करना आवश्यक है, ताकि उनका समय पर सत्यापन हो सके। लेकिन हकीकत यह है कि दस्तावेज़ अपलोड करने में भारी लापरवाही हो रही है, जिससे सत्यापन अटक रहा है और पूरी रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया बाधित हो रही है।
हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट और ऑनर कार्ड भी अटके
परिवहन विभाग के अनुसार, दस्तावेज़ों का सत्यापन पूरा न होने के कारण न केवल ऑनर कार्ड लंबित हैं, बल्कि कई मामलों में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट भी अब तक जारी नहीं हो सकी है। वाहन मालिकों को न तो समय पर रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की हार्ड कॉपी मिल रही है, न ही वे अपने वाहन का बीमा या फाइनेंस संबंधित काम बिना अड़चन पूरा कर पा रहे हैं। कई लोगों को चालान और बीमा क्लेम में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उनके पास वैध रजिस्ट्रेशन दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं।
DTO कार्यालयों की सुस्ती से व्यवस्था चरमराई
बिहार के विभिन्न DTO कार्यालयों की काम करने की गति बेहद धीमी है। पोर्टल आधारित प्रक्रिया में कर्मचारियों की अनदेखी और तकनीकी लापरवाहियों के चलते आम लोग रोज़ाना परेशानी झेल रहे हैं। दस्तावेज़ लेकर दफ्तरों के चक्कर लगाने के बावजूद कोई ठोस समाधान नहीं निकल पा रहा। वाहन खरीदने से लेकर सड़क पर चलाने तक की प्रक्रिया एक त्रासदी बन चुकी है।
इस व्यवस्था का सीधा असर उन हजारों आम नागरिकों पर हो रहा है जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई से वाहन खरीदा, लेकिन अब वे ही सिस्टम की विफलता के कारण परेशान हैं।