
India-Pakistan Conflict में जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) को अंजाम दिया, तब दुनिया की नजरें उस हथियार पर टिक गईं, जिसने पूरा समीकरण बदल दिया — ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos Missile)। इस खतरनाक हथियार का इतना प्रभाव पड़ा कि पाकिस्तान को सीजफायर के लिए मजबूर होना पड़ा। दरअसल, 9 और 10 मई की रात भारत ने पाकिस्तान एयरफोर्स के 12 में से 11 एयरबेस को ब्रह्मोस मिसाइलों से तबाह कर दिया।
कुल 15 ब्रह्मोस मिसाइलें दागी गईं, जिनमें से एक भी डिटेक्ट नहीं हो सकी। खास बात यह है कि पाकिस्तान के भोलारी एयरबेस पर तैनात एयरबॉर्न वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AWACS) भी इस हमले में नष्ट हो गया, जिसकी पुष्टि खुद पाकिस्तान के रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों ने की है। इसके बाद से दुनियाभर के 17 देशों ने इस मिसाइल में रुचि दिखाई है।
‘मिसाइलमैन’ एपीजे अब्दुल कलाम और ब्रह्मोस की नींव
ब्रह्मोस मिसाइल की नींव भारत के पूर्व राष्ट्रपति और ‘मिसाइलमैन’ के नाम से मशहूर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने रखी थी। यह भारत और रूस का संयुक्त प्रयास है, जिसे 12 फरवरी 1998 को डॉ. कलाम और रूस के उप रक्षा मंत्री एनवी मिखाइलोव ने DRDO और रूस के रक्षा मंत्रालय के बीच एक समझौते के तहत शुरू किया था। इसके लिए ब्रह्मोस एयरोस्पेस नामक कंपनी की स्थापना की गई, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 50.5% है और शेष रूस की। आज यह कंपनी 2,135 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ ब्रह्मोस मिसाइल का उत्पादन कर रही है।
नाम में भी साझेदारी की कहानी
ब्रह्मोस (BrahMos) नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी से मिलकर बना है। यह नाम इस संयुक्त उपक्रम के प्रतीक के रूप में चुना गया। यह मिसाइल ‘दागो और भूल जाओ’ सिद्धांत पर आधारित है और इसकी गति व सटीकता इसे बाकी सभी मिसाइलों से अलग बनाती है।
ब्रह्मोस: सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की पहचान
ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसकी गिनती दुनिया की सबसे तेज मिसाइलों में होती है। इसे जमीन, समुद्र, हवा और पनडुब्बी से दागा जा सकता है। इसकी गति और ऊंचाई पर उड़ने की क्षमता इसे रडार से बचाते हुए लक्ष्य पर सटीक प्रहार करने में सक्षम बनाती है।
सेनाओं में ब्रह्मोस की एंट्री
इस मिसाइल का पहला परीक्षण 12 जून 2001 को किया गया था। 2005 में भारतीय नौसेना (Indian Navy) को यह सबसे पहले मिली, जब इसे INS राजपूत पर तैनात किया गया। इसके बाद 2007 में यह भारतीय सेना (Indian Army) को और फिर भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) को इसके एयर लॉन्च वर्जन के रूप में सौंपी गई, जो रूस निर्मित सुखोई-30MKI फाइटर जेट पर तैनात है।
ब्रह्मोस के शानदार फीचर्स
ब्रह्मोस मिसाइल 10 मीटर से लेकर 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ान भर सकती है और 290 किलोमीटर तक लक्ष्य भेद सकती है। इसके नए वर्जन में यह क्षमता 1,500 किमी तक पहुंचाई जा रही है। यह Mac3 यानी ध्वनि से तीन गुना तेज गति से उड़ती है और अपने लक्ष्य से सिर्फ 1 मीटर की दूरी पर वार करती है। इसमें 200-300 किग्रा का विस्फोटक वारहेड होता है और इसकी कीमत लगभग 34 करोड़ रुपये है। 2,900 किग्रा वजनी यह मिसाइल लगातार हल्की की जा रही है।
खासियतें जो ब्रह्मोस को घातक बनाती हैं
ब्रह्मोस की सबसे बड़ी ताकत है कि इसे हवा में UAV की तरह गाइड किया जा सकता है, यानी इसका टारगेट बदला जा सकता है। इसका इंजन आखिरी समय तक चालू रहता है, जिससे यह पूरे रेंज तक सुपरसोनिक स्पीड से जाती है। इसकी ‘स्टीप डाइविंग’ तकनीक इसे सतह के बेहद पास उड़ते हुए भी लक्ष्य को हिट करने में सक्षम बनाती है। इसका सीकर सेंसर कई टारगेट्स के बीच से सही टारगेट को पहचानकर सटीक वार करता है। DRDO की हैदराबाद लैब ने स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण किया है, जिससे ब्रह्मोस की गति अब Mac-8 तक पहुंच सकेगी।
एक घटना से समझिए ब्रह्मोस की ताकत
DRDO के पूर्व वैज्ञानिक रवि गुप्ता के अनुसार, 2005 में बिना वॉरहेड के एक ब्रह्मोस मिसाइल का परीक्षण हुआ। इसे एक पुराने जहाज की ओर दागा गया, और मिसाइल ने पानी की सतह के करीब उड़ते हुए जहाज को चीरते हुए आर-पार कर दिया। जहाज दो हिस्सों में टूट गया और कुछ ही मिनटों में डूब गया। यह इस बात का संकेत है कि बिना वॉरहेड के भी ब्रह्मोस का असर विनाशकारी हो सकता है।
ब्रह्मोस के वर्तमान और भविष्य के वैरियंट्स
इस समय ब्रह्मोस के दो प्रमुख वर्जन — ब्रह्मोस ब्लॉक-I और ब्रह्मोस एयर-लॉन्च — अस्तित्व में हैं। इसके अतिरिक्त तीन उन्नत संस्करणों पर काम जारी है। इनमें 1,500 किमी की रेंज वाला ब्रह्मोस एक्सटेंडेड रेंज, मैक-8 की गति वाला हाइपरसोनिक ब्रह्मोस-II और केवल 1,260 किग्रा वजनी ब्रह्मोस-NG शामिल हैं, जिसकी रेंज 300 किमी होगी।