
भारतीय परंपरा में कान छिदवाना एक रिवाज है,कई स्थानों पर तो बड़ी ही धूम -धाम से बच्चों के कान छिदवाने की रस्में होती है, जिसे कन छेदन संस्कार कहा जाता है, आमतौर पर लोग 3 साल तक की उम्र तक अपने बच्चों के कान छिदवा देते है, जबकि कुछ स्थानों पर माता -पिता अपने अनुसार बच्चों के कान छिदवाते है।
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कान में छेद करने की परंपरा एक दर्द भरी प्रक्रिया है, ऐसा माना जाता है, की कान छिदवाने से दिमाग के दोनों हिस्सों हिस्सों को एक्टिव होने में मदद मिलती है, जो ब्रेन के विकास को तेज करता है, लेकिन कई पेरेंट्स इस बात को लेकर कन्फ्यूज रहते है, की बच्चों के कान किस उम्र में, कब, कहां और कैसे छिदवाएं।
कब छिदवाने चाहिए बच्चे के कान
हर पेरेंट्स और उनके रीतिरिवाजों के अनुसार कान छिदवाने की उम्र अलग -अलग होती है, कुछ माता -पिता कुछ महीनों के बच्चों के कान छिदवा देते है, जबकि कई पेरेंट्स बच्चे के बड़े होने के बाद कान छिदवा है, लेकिन डॉक्टर के अनुसार जब आपका बच्चा 4 महीने का हो जाए तब उसका कान छिदवाना चाहिए, इसके साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित कर ले की कान छिदवाने से पहले बच्चे को DTP वैक्सीन लग गई हो।
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बच्चे का कान कहां छिदवाए
बच्चों का कान छिदवाने के लिए आप ट्रेडिशनल और गनशॉट दोनों तरीकों का इस्तेमाल कर सकते है, सुई से कानों में छेद करने की तकनीक गनशॉट की तुलना में ज्यादा सुरक्षित और सही मानी जाती है, जबकि कान में छेद करने के लिए गनशॉट का उपयोग सुई का उपयोग करने की तुलना में तेज है।
बच्चों का कान छिदवाते समय इन बातों का रखे ध्यान
बच्चों को नहलाने के बाद ही कान छिदवाएं, और कान छिदवाने से पहले बच्चों को दूध जरुर पिलवाएं, और जब बच्चों का कान छिदवा दें तो बच्चों को 2 या 3 दिन तक नहलाने से बचें, आप चाहें तो बच्चे को स्पांज बाथ दे सकते है, और कान छिदवाने के बाद बच्चे को सोने का चांदी की ही बालियां ही पहनाए।