
जब भी आप ऑनलाइन बैंकिंग या डिजिटल पेमेंट के जरिए पैसे ट्रांसफर करते हैं, तो एक चीज जो सबसे पहले पूछी जाती है, वह है IFSC कोड। IFSC यानी Indian Financial System Code एक ऐसा 11 अंकों का अल्फ़ान्यूमेरिक कोड होता है जो भारत में हर बैंक शाखा की एक यूनिक पहचान होता है। चाहे आप NEFT से पैसे भेज रहे हों, RTGS कर रहे हों या IMPS का इस्तेमाल कर रहे हों—हर बार IFSC कोड की ज़रूरत होती है।
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कैसे काम करता है IFSC कोड
इस कोड की अहमियत इतनी ज्यादा है कि इसके बिना इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर मुमकिन ही नहीं होता। ये कोड न केवल लेन-देन को आसान बनाता है बल्कि उसे सुरक्षित भी करता है। इसमें पहले चार अक्षर बैंक के नाम को दर्शाते हैं, पांचवां कैरेक्टर हमेशा ‘0’ होता है, जो रिज़र्व रहता है, और आखिरी छह अंक उस बैंक की शाखा को पहचान दिलाते हैं।
IFSC कोड का उदाहरण और समझ
अगर उदाहरण की बात करें तो ICIC0000456 में ICIC मतलब बैंक का नाम है, ‘0’ स्थायी है, और 000456 उस ब्रांच का यूनिक कोड है। इससे बैंक को ट्रांजैक्शन के दौरान सही खाते तक रकम पहुंचाने में मदद मिलती है।
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डिजिटल बैंकिंग में IFSC कोड की भूमिका
अब चूंकि भारत में डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल दिन-ब-दिन बढ़ रहा है, ऐसे में IFSC कोड की भूमिका और भी अहम हो गई है। यह कोड हर पासबुक, चेकबुक और ऑनलाइन बैंकिंग प्लेटफॉर्म पर आपको मिल जाता है। RBI की वेबसाइट या अपने बैंक की वेबसाइट पर भी आप इसे आसानी से खोज सकते हैं।
IFSC कोड की जरूरत क्यों है
हर बैंक की हर शाखा का अलग IFSC कोड होता है, जिससे ट्रांजैक्शन पूरी तरह से ट्रैक किया जा सकता है। यह कोड पैसे को गलत अकाउंट में जाने से रोकता है और एक तरह से यह आपकी राशि को सही जगह सुरक्षित पहुंचाने का गारंटी कार्ड है।
इसके अलावा, अब जब UPI जैसे सिस्टम भी तेजी से बढ़ रहे हैं, IFSC कोड का इस्तेमाल कम जरूर हुआ है, लेकिन NEFT और RTGS जैसे बड़े अमाउंट ट्रांसफर करने वाले ट्रांजैक्शन के लिए यह अभी भी आवश्यक है।
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