Caste Census 2025: 2025 में होने वाली जनगणना खास होने वाली है क्योंकि इस बार सरकार सभी जातियों की जानकारी भी इकट्ठा करेगी। ऐसा पहली बार होगा जब आज़ादी के बाद की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए जाएंगे। इस कदम का मकसद यह है कि OBC लिस्ट यानी Other Backward Classes की सूची को नए और सही आंकड़ों के आधार पर दोबारा तैयार किया जाए।

यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की बैठक के बाद लिया गया। सरकार का मानना है कि इससे जाति के आधार पर की जाने वाली राजनीति को रोका जा सकेगा और सही जातियों को ही आरक्षण मिल सकेगा।
जातियों की गिनती हर 10 साल में करने की योजना बनेंगी
सरकार की योजना है कि अब हर दस साल में होने वाली जनगणना में जातियों की स्थिति भी जानी जाएगी। यानी अब सिर्फ यह नहीं पता चलेगा कि देश की जनसंख्या कितनी है, बल्कि यह भी पता लगेगा कि किस जाति की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति क्या है। इससे यह समझने में आसानी होगी कि कौन-सी जातियां अब पिछड़ी नहीं रहीं और कौन-सी जातियां अभी भी मदद की हकदार हैं।
RSS ने भी इस फैसले का समर्थन किया है लेकिन शर्त यह रखी है कि इन आंकड़ों का राजनीतिक फायदा नहीं उठाया जाए। इसलिए सरकार ने यह तय किया कि जातियों की गिनती को जनगणना का हिस्सा बनाकर इसे एक आधिकारिक और भरोसेमंद प्रक्रिया बनाया जाए।
OBC लिस्ट में बदलाव की मजबूत वजह
अभी तक OBC लिस्ट को बनाने का कोई मजबूत और नया आधार नहीं था। सरकारें पुराने आंकड़ों और छोटे-मोटे सर्वे के आधार पर जातियों को ओबीसी में शामिल करती रही हैं, जिससे कई बार विवाद भी हुए। अब अगर हर जाति के ताज़ा आंकड़े होंगे तो यह साफ हो जाएगा कि कौन जाति सच में पिछड़ी है और कौन अब तरक्की कर चुकी है।
इन आंकड़ों के आधार पर सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी बदलाव के लिए अपील कर सकती है। इससे आरक्षण की नीति को ज्यादा सही और न्यायपूर्ण बनाया जा सकेगा।
1931 के पुराने आंकड़ों पर आधारित है आरक्षण
आज जो आरक्षण दिया जा रहा है, उसका आधार 1931 की जनगणना है। इस जनगणना को हुए अब करीब 100 साल हो चुके हैं। तब से अब तक समाज में काफी बदलाव आ चुके हैं, लेकिन सरकारों ने कभी भी जातिवार जनगणना की हिम्मत नहीं दिखाई।
1941 में युद्ध की वजह से जनगणना नहीं हो सकी और आज़ादी के बाद से लेकर अब तक सरकारों ने जातियों की सही गिनती नहीं करवाई। 1991 में मंडल आयोग की रिपोर्ट पर आधारित आरक्षण लागू हुआ लेकिन उसके पास भी कोई ताज़ा डेटा नहीं था।
सर्वे पर आधारित घोषणाओं पर उठते रहे सवाल
कुछ राज्यों ने समय-समय पर अपनी तरफ से सर्वे करवाकर जातियों को ओबीसी में शामिल किया, लेकिन इन सर्वे पर कई बार सवाल खड़े हुए। 2011 में संप्रग सरकार ने एक सर्वे कराया था लेकिन उसमें गड़बड़ियां इतनी ज्यादा थीं कि उसे कभी जारी ही नहीं किया गया।
अब सरकार चाहती है कि इस प्रक्रिया को पारदर्शी और भरोसेमंद बनाया जाए ताकि भविष्य में कोई सवाल न उठे और सही जातियों को ही मदद मिल सके।