
मुंबई समेत पूरे देश में पारिवारिक संपत्ति से जुड़े विवाद अब एक आम हकीकत बन चुके हैं। यह धारणा गलत है कि केवल आम या मध्यम वर्गीय परिवार ही इससे जूझते हैं — बड़े-बड़े बिजनेस हाउस और नामचीन परिवारों में भी ऐसे मसले अक्सर कोर्ट-कचहरी तक पहुँच जाते हैं। असली जड़ होती है कानून की जानकारी का अभाव। जब बंटवारे की बात आती है, तो संबंधों में कड़वाहट का पैदा होना तय सा लगता है।
क्या एक शादीशुदा बहन भाई की संपत्ति में हिस्सेदारी मांग सकती है?
यह सवाल लाखों भारतीयों के मन में उठता है — क्या एक विवाहित बहन अपने भाई की संपत्ति पर कानूनी अधिकार जता सकती है? पारिवारिक चर्चाओं में यह विषय अक्सर उठ जाता है या सामाजिक धारणाओं के अधीन दब जाता है। बहुत से लोग अब भी मानते हैं कि शादी के बाद बहन का मायके से कोई लेना-देना नहीं रहता, लेकिन भारतीय कानून की नजर में यह सोच सही नहीं है।
पैतृक संपत्ति में बेटी का बराबरी का हक
2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में किए गए बदलाव ने इस भ्रम को दूर कर दिया। अब बेटी, चाहे विवाहित हो या अविवाहित, पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार रखती है। इसका अर्थ यह है कि यदि पिता की संपत्ति उन्हें उनके पूर्वजों से मिली है — यानी वह संपत्ति पैतृक है — तो बेटी का उस पर कानूनी हक बनता है।
स्वयं अर्जित संपत्ति पर माता-पिता की स्वतंत्रता
अगर संपत्ति माता-पिता ने खुद की मेहनत से अर्जित की है, यानी वह स्व-अर्जित संपत्ति है, तो वे उसे अपनी इच्छा अनुसार किसी को भी दे सकते हैं — बेटे को, बेटी को या किसी तीसरे व्यक्ति को। ऐसे मामलों में वसीयत-Will (या इच्छा-पत्र) की बहुत अहम भूमिका होती है। यदि माता-पिता अपनी संपत्ति बेटी को देना चाहें, तो भाई का उस पर कोई कानूनी अधिकार नहीं बनता।
भाई की संपत्ति में बहन कब बनती है वारिस?
सामान्य रूप से बहन को भाई की संपत्ति में कोई हक नहीं होता। लेकिन यह स्थिति तब बदल जाती है जब भाई की मृत्यु हो जाती है और उसने कोई वसीयत नहीं छोड़ी होती। इंटेस्टेट डेथ (बिना वसीयत के मृत्यु) की स्थिति में यदि भाई के कोई प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी — जैसे पत्नी, बेटा या बेटी — नहीं हैं, तब बहन का अधिकार बनता है। ऐसी अवस्था में बहन को दूसरे दर्जे की उत्तराधिकारी मानते हुए संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है।
संपत्ति विवाद से सुरक्षा का उपाय
अगर किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति कैसे बांटी जाएगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसने वसीयत बनाई थी या नहीं। अगर वसीयत है, तो संपत्ति उसमें लिखे अनुसार बांटी जाती है। अगर वसीयत नहीं है, तो हिंदू उत्तराधिकार कानून के हिसाब से संपत्ति पर हक तय होता है। इसमें सबसे पहले करीबी रिश्तेदारों को संपत्ति मिलती है, और अगर वे नहीं हैं, तो दूसरे रिश्तेदारों जैसे भाई-बहन को मिल सकती है।