
बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल को लेकर आजकल हर पेरेंट्स की चिंता वाजिब है। इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल प्लेटफॉर्म्स बच्चों की डिजिटल लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुके हैं। हालांकि, सोशल मीडिया की इस दुनिया में कई खतरे भी छिपे हैं जो बच्चों की मेंटल हेल्थ, प्राइवेसी और सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में माता-पिता की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों की डिजिटल दुनिया में समझदारी से नजर रखें और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए जरूरी कदम उठाएं।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल आज के दौर में बहुत आम बात है, लेकिन जब बात बच्चों की आती है तो यहां सावधानी और सतर्कता की जरूरत होती है। 13 से 17 साल के बीच के बच्चे सबसे ज्यादा एक्टिव सोशल मीडिया यूज़र बन चुके हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में 80 प्रतिशत से अधिक किशोर किसी न किसी रूप में सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं। इस स्थिति में माता-पिता को बच्चों की ऑनलाइन एक्टिविटी पर ध्यान देने के साथ-साथ उन्हें सही और गलत का फर्क भी समझाना जरूरी हो जाता है।
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बच्चों की प्राइवेसी को लेकर रखें सजगता
बच्चों की सुरक्षा के लिए सोशल मीडिया अकाउंट की प्राइवेसी सेटिंग्स को सही ढंग से कॉन्फिगर करना सबसे पहली ज़रूरत है। अधिकतर पेरेंट्स इस बात को नज़रअंदाज कर देते हैं कि बच्चे किन लोगों से जुड़े हैं या किससे चैट कर रहे हैं। इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स में पैरेंटल कंट्रोल फीचर्स की मदद से पेरेंट्स यह देख सकते हैं कि बच्चे किन लोगों को फॉलो कर रहे हैं, कौन उन्हें मैसेज कर रहा है और किस तरह की पोस्ट देख रहे हैं।
इसके अलावा बच्चों को भी यह सिखाना जरूरी है कि वे किसी अजनबी से पर्सनल इंफॉर्मेशन शेयर न करें। कई बार साइबर बुलिंग, ऑनलाइन फ्रॉड और गलत कंटेंट का शिकार बनने के पीछे यही एक कारण होता है—अनजानों पर भरोसा करना। अगर बच्चा किसी अजनबी से बात कर रहा है तो तुरंत सतर्क रहें।
डिजिटल संतुलन बनाना है तो स्क्रीन टाइम करें सीमित
बच्चों की मेंटल हेल्थ और फिजिकल हेल्थ दोनों को ध्यान में रखते हुए सोशल मीडिया इस्तेमाल का एक संतुलन बनाना ज़रूरी है। दिनभर स्क्रीन पर चिपके रहना बच्चों की नींद, पढ़ाई, और सामाजिक विकास को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए माता-पिता को स्क्रीन टाइम लिमिट तय करनी चाहिए। Google Family Link या Apple Screen Time जैसे टूल्स की मदद से पेरेंट्स ये मॉनिटर कर सकते हैं कि बच्चा दिन में कितनी देर कौन सा ऐप इस्तेमाल कर रहा है।
रात के समय, खाने के दौरान और स्कूल के बाद सोशल मीडिया का इस्तेमाल सीमित करना बच्चों के स्वास्थ के लिए अच्छा रहता है। इससे उनका ध्यान ऑफलाइन एक्टिविटीज़ जैसे खेल, पढ़ाई और परिवार के साथ समय बिताने की ओर भी जाता है।
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डिजिटल सुरक्षा सिखाना है बेहद जरूरी
बच्चों को डिजिटल दुनिया के खतरों के बारे में जागरूक करना समय की मांग है। उन्हें यह समझाना ज़रूरी है कि सोशल मीडिया पर हर यूज़र दोस्त नहीं होता और हर जानकारी सच्ची नहीं होती। साइबर बुलिंग, डाटा चोरी, फिशिंग लिंक और फर्जी प्रोफाइल्स जैसे मुद्दे अब आम हो चुके हैं।
माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सिखाएं कि कैसे किसी संदिग्ध लिंक पर क्लिक न करें, कैसे मजबूत पासवर्ड बनाएं, और क्या करना है जब कोई उन्हें ऑनलाइन परेशान करे। किसी भी प्रकार की परेशानी आने पर तुरंत पेरेंट्स से बात करने के लिए बच्चों को प्रेरित करना भी एक ज़रूरी कदम है।
सकारात्मक बातचीत बनाएं आदत
कई पेरेंट्स बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल को लेकर केवल निगरानी में विश्वास करते हैं लेकिन संवाद की कमी के कारण बच्चे अक्सर झूठ बोलने लगते हैं। इसके बजाय माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ एक ओपन कम्युनिकेशन बनाए रखें। बच्चे को यह महसूस होना चाहिए कि उसके माता-पिता उस पर भरोसा करते हैं और वह किसी भी स्थिति में उनसे बात कर सकता है।
हर दिन कुछ समय बच्चों से उनकी सोशल मीडिया एक्टिविटी, पसंदीदा यूट्यूबर, या किस टॉपिक पर वो रील्स देखते हैं—इन सब पर बात करें। इससे बच्चे भी खुलकर बात करने लगते हैं और पेरेंट्स को भी यह जानने का मौका मिलता है कि बच्चा किस दिशा में जा रहा है।
टेक्नोलॉजी को बनाएं सहयोगी, दुश्मन नहीं
आज के समय में टेक्नोलॉजी से दूर रहना संभव नहीं है, इसलिए इसे दुश्मन नहीं, सहयोगी बनाएं। Instagram Parental Supervision, YouTube Restricted Mode, Meta Family Center जैसे फीचर्स पेरेंट्स के लिए बहुत उपयोगी हैं। इनके ज़रिए आप बच्चों के सोशल मीडिया व्यवहार पर नज़र रख सकते हैं बिना उनकी आज़ादी को खत्म किए।
साथ ही बच्चों को रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy, साइंस इनोवेशन, फाइनेंस लिटरेसी, एनवायरनमेंट जैसे सकारात्मक और ज्ञानवर्धक कंटेंट की ओर भी मोड़ सकते हैं। इससे वे सोशल मीडिया का सही उपयोग करना सीखते हैं।
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