बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर चल रहे विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने चुनाव आयोग के रुख को सही ठहराते हुए साफ कहा “आधार को नागरिकता का अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता”

क्या है मामला?
बिहार में चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट की समीक्षा के लिए SIR अभियान चलाया. इस दौरान नागरिकता साबित करने के लिए कुछ दस्तावेज मांगे गए, लेकिन कई लोग इन दस्तावेज़ों के अभाव में लिस्ट से बाहर हो गए. इस पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.
जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा –
- आधार सिर्फ पहचान का साधन है, नागरिकता साबित करने का नहीं.
- हर राज्य में नागरिकता के प्रमाण के लिए जरूरी दस्तावेज होने चाहिए.
- सिम कार्ड लेने, सरकारी योजनाओं और जाति प्रमाण पत्र के लिए भी पहचान जरूरी होती है.
उन्होंने यह भी सवाल किया कि जिन लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट या स्कूल का सर्टिफिकेट नहीं है, वे नागरिकता कैसे साबित करेंगे?
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कपिल सिब्बल का तर्क
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि:
- जन्म प्रमाण पत्र सिर्फ 3.056% लोगों के पास है.
- पासपोर्ट सिर्फ 2.7% के पास है.
- मैट्रिक का सर्टिफिकेट 14.71% लोगों के पास है.
उन्होंने कहा, इतने कम लोगों के पास ही दस्तावेज हैं, तो बाकी का क्या होगा?
65 लाख लोग लिस्ट से बाहर?
दूसरे पक्ष के वकील गोपाल शंकरनारायण ने दावा किया कि SIR प्रक्रिया में 65 लाख लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो गए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर हटाए जाने का मामला तथ्यों और आंकड़ों पर निर्भर करेगा.
जिंदा लोगों को मरा दिखाने का मामला
सुनवाई में यह मुद्दा भी उठा कि बिहार के एक क्षेत्र में 12 जीवित लोगों को ‘मृत’ दिखा दिया गया। इस पर चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने सफाई दी कि यह सिर्फ ड्राफ्ट लिस्ट है और इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ गलतियां हो सकती हैं, लेकिन ऐसे मामलों को तुरंत सुधारा जाएगा.
अब आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल SIR को लेकर चुनाव आयोग के कदम को सही माना है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया निष्पक्ष और कानून के मुताबिक होनी चाहिए. अगली सुनवाई में इस बात पर और चर्चा होगी कि यह प्रक्रिया संविधान के तहत है या नहीं.