जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी का रहस्य! रथ यात्रा से पहले जान लें क्यों नहीं रखते यहां भक्त पांव

जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी, जिसे यमशिला कहा जाता है, एक रहस्यमयी धार्मिक परंपरा से जुड़ी है। माना जाता है कि यहां यमराज का वास है और दर्शन के बाद इस पर पैर रखना अशुभ होता है। यही कारण है कि रथ यात्रा से पहले भक्त इस नियम का पालन करते हैं। जानिए इस अनूठी परंपरा के पीछे की कथा और आध्यात्मिक संदेश।

By GyanOK

पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि इसकी अनेक रहस्यमयी परंपराएं भी भक्तों को गहराई से प्रभावित करती हैं। इनमें से सबसे चर्चित और आध्यात्मिक रहस्य मंदिर की तीसरी सीढ़ी से जुड़ा है, जिसे “यमशिला” कहा जाता है। इस रहस्य का सीधा संबंध भगवान जगन्नाथ, यमराज और मोक्ष के मार्ग से है, और यही वजह है कि रथ यात्रा-Rath Yatra जैसे पावन अवसर से पहले यह परंपरा चर्चा में आ जाती है।

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तीसरी सीढ़ी का नाम यमशिला क्यों पड़ा

मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर कुल 22 सीढ़ियाँ हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में “बैसी पहाचा” कहा जाता है। इन सीढ़ियों में तीसरी सीढ़ी को विशिष्ट स्थान प्राप्त है क्योंकि मान्यता के अनुसार, यही वह जगह है जहां यमराज स्वयं वास करते हैं। कहा जाता है कि जब भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र से भक्तों के सारे पाप कटने लगे, तो यमराज ने भगवान से निवेदन किया कि लोग यमलोक आना ही बंद कर देंगे। इस पर भगवान ने उन्हें तीसरी सीढ़ी पर स्थान दे दिया और यह घोषित हुआ कि दर्शन के बाद इस सीढ़ी पर पैर रखना पुण्य के लिए हानिकारक होगा।

दर्शन के बाद तीसरी सीढ़ी पर पांव रखने की मनाही

इसी कारण मंदिर के बाहर जाने के मार्ग पर भक्त तीसरी सीढ़ी पर पैर रखने से बचते हैं। केवल प्रवेश करते समय ही उस पर पांव पड़ सकता है। दर्शन के बाद जब भक्त बाहर निकलते हैं, तो वे या तो तीसरी सीढ़ी को लांघ जाते हैं या एक किनारे से निकलते हैं, ताकि अनजाने में भी उस पर पांव न पड़े।

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काली सीढ़ी और प्रशासन की सजगता

इस परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए मंदिर प्रशासन ने तीसरी सीढ़ी को काले रंग से चिह्नित कर रखा है। इससे भक्त इसे आसानी से पहचान लेते हैं और भूलवश भी उस पर पैर रखने से बचते हैं। यह परंपरा न केवल यमराज के प्रति सम्मान प्रकट करती है, बल्कि भक्तों को अपने कर्मों के प्रति सजग रहने की प्रेरणा भी देती है।

रथ यात्रा के दौरान विशेष सतर्कता

जगन्नाथ मंदिर की यह रहस्यपूर्ण परंपरा एक अद्भुत धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। रथ यात्रा के दौरान जब लाखों भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं, तब भी इस नियम का सख्ती से पालन किया जाता है। यह तथ्य दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में परंपरा और आस्था का कितना गहरा संबंध है।

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