
भारत के हालिया ऑपरेशन सिंदूर-Operation Sindoor ने पाकिस्तान की फौज को चार दिनों में ऐसा झटका दिया कि उसका सैन्य ढांचा लड़खड़ा गया। भारत की रणनीतिक सफलता ने जहां दक्षिण एशिया की सैन्य संतुलन की तस्वीर बदल दी, वहीं पाकिस्तान की सियासत और सेना के बीच नया तनाव पैदा कर दिया। इसी युद्ध के बाद जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बना देना, ना सिर्फ एक हार को ढंकने की कोशिश है बल्कि तख्तापलट की एक नई स्क्रिप्ट की शुरुआत भी लगती है।
Pakistani Member of Parliament here seen calling their Prime Minister Shehbaz Sharif as “Buzdil”. He goes on to say that he can't even take name of Indian PM Modi. Pakistan Army is very demotivated after India’s attacks. (Pakistan’s real PM Asim Munir has been in hiding) pic.twitter.com/HjCKIbIihT
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) May 9, 2025
शहबाज शरीफ की कमजोर होती पकड़ और संसद में आलोचना
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की स्थिति अब पहले जैसी मज़बूत नहीं रही। संसद में उनके खिलाफ उठती आवाज़ें और विपक्षी नेताओं के बयान इस ओर इशारा करते हैं कि शरीफ अब जनरल मुनीर की कठपुतली बन चुके हैं। सांसद शाहिद अहमद खट्टक द्वारा संसद में शरीफ को “गीदड़” कहा जाना, बताता है कि सत्ता की बागडोर अब सैन्य हाथों में जा चुकी है। कैबिनेट की बैठकों में हुए हालिया फ़ैसले — विशेषकर मुनीर को फील्ड मार्शल बनाने का — इस गिरती राजनीतिक पकड़ का प्रमाण हैं।
जनरल आसिम मुनीर का विवादास्पद प्रमोशन
पाकिस्तानी सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ में जनरल मुनीर की “रणनीतिक नेतृत्व” की प्रशंसा की गई, जो भारत के खिलाफ किए गए “सैन्य प्रयासों” पर आधारित थी। परंतु इस प्रमोशन को पाकिस्तान की मीडिया और जनता ने एक असफल जनरल को “हीरो” बनाने की नाकाम कोशिश बताया। वरिष्ठ पत्रकार मोईद पीरजादा ने सरकार की इस नीति को झूठ और दिखावे की राजनीति बताया है।
तख्तापलट की तैयारी और जनरल की सत्ता की भूख
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान की सेना ने जब-जब सत्ता की बागडोर हथियाई, देश ने राजनीतिक अस्थिरता और वैश्विक अलगाव झेला। 1953 से लेकर 1999 तक चार बड़े सैन्य तख्तापलट हो चुके हैं, और अब आसिम मुनीर के इशारे उन्हीं घटनाओं की पुनरावृत्ति की ओर संकेत कर रहे हैं। प्रमोशन और एक्सटेंशन के ज़रिए जनरल मुनीर ने खुद को सत्ता में स्थायी बनाने का जो प्लान रचा है, वह न केवल लोकतंत्र के लिए खतरा है बल्कि सेना के भीतर भी सत्ता-संघर्ष की आशंका को जन्म देता है।
भारत विरोधी एजेंडा और जिहादी सोच
जनरल मुनीर केवल एक फौजी नहीं, एक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भारत विरोध और जिहादी सोच से प्रेरित है। कश्मीर को “गले की नस” बताना और पहलगाम जैसे इलाकों में आतंकी हमले को बढ़ावा देना, इसी सोच का परिचायक है। 1988 में जिया-उल-हक द्वारा शुरू किया गया ऑपरेशन टोपैक और अब मुनीर की नीति में खतरनाक समानता दिखती है। भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ने की इस कोशिश से क्षेत्रीय शांति को गंभीर खतरा है।
पोस्ट रिटायरमेंट प्लान या तानाशाही की कवायद
पाकिस्तान की सत्ता संरचना में जब भी कोई जनरल रिटायर होता है, उसके बाद उसका भविष्य हमेशा अनिश्चित रहता है। मुशर्रफ इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। जनरल मुनीर को यह बखूबी पता है कि सेना प्रमुख का पद छोड़ने के बाद उन्हें भी जेल या देश निकाले का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए फील्ड मार्शल बनना उनके लिए एक सुरक्षा कवच जैसा है, जिससे उन्हें ताउम्र वर्दी में रहने और किसी भी सियासी खतरे से बचे रहने का मौका मिलेगा।
जनता और सेना के बीच बढ़ती खाई
आसिम मुनीर ने जिस तरह धार्मिक उन्माद और आतंक के सहारे अपनी छवि को बचाने की कोशिश की है, उसने पाकिस्तान के आम नागरिक और सेना के बीच दूरी बढ़ा दी है। उनका चरमपंथी रुख पाकिस्तान के अंदरूनी हालात को और बिगाड़ रहा है। भारत के साथ हार छुपाने के लिए किया गया यह प्रमोशन, देश के भीतर उठ रहे सवालों से भागने की कोशिश है।