
हाल ही में ओडिशा उच्च न्यायालय (Odisha High Court) ने एक ऐसा निर्णय सुनाया जिसने भारतीय न्यायिक व्यवस्था के मानकों को एक नई दिशा दी है। मामला एक महिला से जुड़ा है, जिस पर आरोप है कि उसने धोखाधड़ी से ₹1 करोड़ से अधिक का लोन (Loan) ले लिया था। यह धोखाधड़ी तब उजागर हुई जब पता चला कि उसने पहले से गिरवी रखी संपत्तियों को दोबारा गिरवी रखकर कई बैंकों—सरकारी और निजी दोनों—से लोन प्राप्त किया।
क्या था पूरा मामला
महिला को आर्थिक अपराध शाखा (Economic Offences Wing – EOW) ने 5 फरवरी को गिरफ्तार किया था। उसने विभिन्न बैंक संस्थानों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भ्रमित किया और कई बार एक ही संपत्ति को गिरवी रखकर ऋण लेती रही। यह गंभीर आर्थिक अपराध उसे कई सालों तक सलाखों के पीछे पहुंचा सकता था, लेकिन कोर्ट ने इस मामले में सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए एक अनूठा निर्णय सुनाया।
कोर्ट का आदेश: जमानत की शर्तें साफ-साफ
13 मई को न्यायमूर्ति एस.के. पाणिग्रही ने महिला को सशर्त जमानत दी। आदेश के अनुसार, महिला को दो महीने तक हर कार्यदिवस पर सुबह 8 से 10 बजे तक उस बैंक की सफाई करनी होगी, जिससे उसने लोन लिया था। यह काम न केवल सजा के रूप में देखा गया, बल्कि इसके पीछे यह भावना भी रही कि आरोपी को सार्वजनिक संपत्ति और संसाधनों के महत्व का अनुभव हो।
अन्य सख्त शर्तें भी लागू
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला को किसी भी प्रकार की आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं होना है और न ही उसे केस से जुड़े किसी भी साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति है। यदि वह इन शर्तों का उल्लंघन करती है, तो उसकी जमानत तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी जाएगी।
जमानत की वर्तमान स्थिति: ₹10 लाख की राशि बनी बाधा
हालांकि महिला को कोर्ट से जमानत मिल चुकी है, लेकिन अभी तक वह रिहा नहीं हो पाई है। इसका कारण यह है कि ट्रायल कोर्ट ने ₹10 लाख की जमानती राशि तय की है, जिसे महिला अब तक जमा नहीं कर सकी है। इस कारण से वह अभी भी हिरासत में है।
अदालती सजा का सामाजिक संदेश
यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली में ‘Reformative Justice’ की स्पष्ट झलक प्रस्तुत करता है। परंपरागत कारावास की जगह सामाजिक सेवा की सजा देना एक नई सोच को दर्शाता है। जब कोई व्यक्ति स्वयं उस संस्था की सेवा करता है, जिसे उसने धोखा दिया, तो उसके मन में अपराध के प्रति पछतावा उत्पन्न होता है। साथ ही समाज के लिए भी यह एक प्रेरक उदाहरण बनता है कि कानून केवल दंड देने के लिए नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास के लिए भी है।