कौन था मीर जाफर? इतिहास का सबसे बड़ा गद्दार फिर चर्चा में क्यों आया? जानिए

मीर जाफर, 18वीं सदी में बंगाल के नवाब, प्लासी के युद्ध के दौरान अंग्रेजों का साथ देकर सिराजुद्दौला को धोखा देने वाले पहले भारतीय नेता माने जाते हैं। उनकी गद्दारी से भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत हुई और आज भी उनका नाम गद्दारी का प्रतीक बना हुआ है। उनके वंशज आज भी इस बदनामी से जूझ रहे हैं।

By GyanOK

मीर जाफर कौन था और अब क्यों है चर्चा में?

मीर जाफर, जिसका पूरा नाम सैयद मीर मोहम्मद जाफर अली खान था, भारतीय इतिहास में गद्दारी का पर्याय बन चुका है। 1757 में प्लासी के युद्ध के दौरान मीर जाफर ने नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ अंग्रेजों का साथ दिया था, और यही वह क्षण था जिसने भारत में ब्रिटिश हुकूमत की नींव डाल दी। मीर जाफर बंगाल के नवाब के रूप में तो स्थापित हो गए, लेकिन उस सत्ता के पीछे अंग्रेजों की कठपुतली मात्र बनकर रह गए।

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प्लासी का युद्ध और मीर जाफर की गद्दारी

प्लासी के युद्ध से पहले मीर जाफर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति थे। अंग्रेजों ने मीर जाफर को नवाब बनाने का लालच देकर उसके साथ गुप्त समझौता किया। इस युद्ध में मीर जाफर ने जानबूझकर अपनी सेना को निष्क्रिय रखा, जिससे सिराजुद्दौला की पराजय तय हो गई। युद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को नवाब नियुक्त तो किया, लेकिन वास्तविक सत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में ही रही।

‘नमक हराम ड्योढ़ी’

मीर जाफर का नाम इतना बदनाम हुआ कि उनके महल को भी ‘नमक हराम ड्योढ़ी’ कहा जाने लगा। यह मुर्शिदाबाद में स्थित है और आज भी मीर जाफर की गद्दारी का प्रतीक बना हुआ है। अंग्रेजों की चालों में फंसकर सत्ता हासिल करने की इस कीमत को इतिहास ने कभी माफ नहीं किया।

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फिर चर्चा में क्यों आया मीर जाफर का नाम?

हाल ही में मीर जाफर एक बार फिर सुर्खियों में आए जब उनके 14वें वंशज सैयद रजा अली मिर्जा ने यह स्वीकार किया कि उनके परिवार को आज भी मीर जाफर की गद्दारी के कलंक का सामना करना पड़ता है। उनका कहना है कि घर में मीर जाफर की कोई तस्वीर नहीं लगाई जाती और परिवार यह चाहता है कि इस कलंक से उनका नाम हटे।

राजनीति में ‘मीर जाफर’ का इस्तेमाल

मीर जाफर की भूमिका पर बहस केवल इतिहास तक सीमित नहीं है, यह आज भी राजनीतिक चर्चाओं में गूंजता है। कई बार नेताओं को ‘मीर जाफर’ कहा जाता है, जब वे विरोधी दल से जाकर गठजोड़ करते हैं। यह दिखाता है कि मीर जाफर की गद्दारी केवल इतिहास की बात नहीं, बल्कि भारतीय जनमानस में गहराई से दर्ज एक चेतावनी भी है।

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