पश्चिम बंगाल सरकार विधानसभा के आगामी सत्र में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए एक नई जाति सर्वे रिपोर्ट पेश करने की तैयारी में है। इस रिपोर्ट में 140 उप-जातियों की पहचान की गई है, जो राज्य में लागू 17% ओबीसी आरक्षण का लाभ पा सकेंगी।

यह सर्वे पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग (WBCBC) की सिफारिशों पर आधारित है, जिसे हाल ही में राज्य मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार 76 नई उप-जातियों को ओबीसी सूची में जोड़ने जा रही है, जिससे पहले से सूचीबद्ध 64 उप-जातियों के साथ कुल 140 उप-जातियां आरक्षण का फायदा उठा सकेंगी। हालांकि दो उप-जातियों पर अभी अंतिम निर्णय लंबित है।
हाई कोर्ट ने रद्द किए थे 12 लाख ओबीसी सर्टिफिकेट
यह सर्वे ऐसे समय में सामने आया है, जब पिछले साल मई 2024 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने 2010 के बाद जारी किए गए करीब 12 लाख ओबीसी प्रमाण पत्र रद्द कर दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय को बिना पर्याप्त सर्वेक्षण के ओबीसी आरक्षण दिया गया, जो संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं था। इसके बाद ममता सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और मार्च 2025 में अदालत को बताया कि वह तीन महीने के भीतर नया ओबीसी सर्वे पूरा कर लेगी।
राजनीतिक महत्व और मुस्लिम समुदाय का समर्थन
टीएमसी सरकार का यह कदम आगामी 2026 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भी देखा जा रहा है। राज्य में मुस्लिम समुदाय की आबादी करीब 27% है, जो अब बढ़कर 30% तक हो सकती है। मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर जैसे जिलों में मुस्लिम बहुल आबादी टीएमसी की चुनावी रणनीति में अहम भूमिका निभाती है। बीजेपी ने टीएमसी पर आरोप लगाया कि वह वोट बैंक की राजनीति के तहत बिना सर्वेक्षण के मुस्लिम समुदाय को ओबीसी आरक्षण दे रही है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और राज्य सरकार का दावा
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह ओबीसी सूची में शामिल की गई जातियों के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन और सार्वजनिक सेवाओं में उनकी अपर्याप्त भागीदारी का स्पष्ट आधार बताए। राज्य सरकार का कहना है कि नई सूची में शामिल 77 जातियों का चयन तीन स्तरों पर किए गए विस्तृत मूल्यांकन के बाद ही किया गया है।
राज्य की राजनीति और सामाजिक न्याय पर असर
यह सर्वे और प्रस्तावित सूची न केवल पश्चिम बंगाल की राजनीति बल्कि सामाजिक न्याय और आरक्षण व्यवस्था पर भी गहरा असर डाल सकती है। टीएमसी और बीजेपी के बीच इस मुद्दे पर राजनीतिक टकराव और बढ़ सकता है, खासकर जब विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं।