
यूनिवर्सल पेंशन स्कीम-Universal Pension Scheme (UPS) को लेकर केंद्र सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण घोषणा की है, जिससे हजारों रिटायर हो चुके सरकारी कर्मचारियों को सीधा लाभ मिलने वाला है। वित्त मंत्रालय ने साफ किया है कि 31 मार्च 2025 तक या उससे पहले रिटायर होने वाले एनपीएस-NPS के सब्सक्राइबर्स, जिन्होंने कम से कम 10 साल की सेवा पूरी की है, वे अब एनपीएस के मौजूदा लाभों के अलावा यूपीएस के तहत अतिरिक्त आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकेंगे।
इस स्कीम के तहत रिटायर होने वाले कर्मचारियों को एकमुश्त रकम दी जाएगी, जो उनकी अंतिम सैलरी और महंगाई भत्ते का दसवां हिस्सा होगी, जिसे हर छह महीने की पूरी सेवा अवधि के लिए गिना जाएगा। यानी जितनी लंबी सेवा, उतना बड़ा लाभ। इस घोषणा ने उन कर्मचारियों के लिए उम्मीद की नई किरण जगाई है, जो वर्षों तक सरकारी सेवा में योगदान देकर अब एक सुरक्षित और सम्मानजनक रिटायरमेंट की अपेक्षा कर रहे हैं।
एकमुश्त राशि के साथ-साथ मासिक लाभ भी मिलेगा
वित्त मंत्रालय के मुताबिक, केवल एकमुश्त लाभ ही नहीं बल्कि यूपीएस के तहत एक अतिरिक्त मासिक पेंशन राशि भी मिलेगी। यह राशि इस प्रकार तय की जाएगी कि यूपीएस के तहत दी जाने वाली सुनिश्चित पेंशन और डीआर (महंगाई राहत) से एनपीएस की एन्युटी राशि घटाई जाएगी। इसके अलावा, कर्मचारियों को बकाया राशि भी प्राप्त होगी जिस पर PPF दर के अनुसार साधारण ब्याज मिलेगा।
इस पूरी प्रक्रिया का लाभ उठाने के लिए दावा करने की अंतिम तिथि 30 जून 2025 निर्धारित की गई है। यूपीएस को जनवरी 2025 में औपचारिक रूप से नोटिफाई किया गया था और इसमें 50% सुनिश्चित पेंशन का वादा किया गया है, जो सेवानिवृत्ति से पहले के 12 महीनों की औसत बेसिक सैलरी पर आधारित होगी। हालांकि, इस लाभ का लाभ उठाने के लिए न्यूनतम 25 वर्ष की सेवा पूरी करना अनिवार्य होगा।
सभी दिव्यांग कर्मचारियों के लिए समान रिटायरमेंट उम्र अनिवार्य
वहीं दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो सरकारी सेवा में दिव्यांग कर्मचारियों के हक में है। कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी की विकलांगता की प्रकृति के आधार पर रिटायरमेंट की उम्र में भिन्नता करना असंवैधानिक है और यह अनुच्छेद 14 के तहत भेदभाव की श्रेणी में आता है।
इस मामले में एक लोकोमोटर-विकलांग इलेक्ट्रीशियन को 58 वर्ष में रिटायर कर दिया गया था, जबकि दृष्टिबाधित कर्मचारियों को 60 वर्ष की उम्र तक सेवा देने की अनुमति थी। जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह का व्यवहार मनमाना है और सभी प्रकार की दिव्यांगताओं के लिए समान रिटायरमेंट उम्र सुनिश्चित की जानी चाहिए।
रिटायरमेंट की उम्र तय करना कर्मचारी का अधिकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि रिटायरमेंट की उम्र निर्धारित करने का अधिकार कर्मचारी के पास नहीं बल्कि राज्य के पास होता है। हालांकि, यह निर्णय भी इस शर्त पर लागू होगा कि राज्य अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का पालन करे।
मामले में यह भी पाया गया कि पहले दृष्टिबाधित कर्मचारियों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाकर 60 वर्ष कर दी गई थी, लेकिन बाद में यह सुविधा वापस ले ली गई, जिससे लोकोमोटर-विकलांग कर्मचारी प्रभावित हुआ। यह विवाद तब और गहराया जब संबंधित कर्मचारी ने 60 वर्ष की उम्र तक सेवा देने की मांग की, हालांकि उसका रिटायरमेंट पहले ही हो चुका था।