भारत में हर साल लाखों छात्र 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा में फेल हो जाते हैं. हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में 10वीं कक्षा में 22.17 लाख और 12वीं कक्षा में 20.16 लाख छात्र फेल हुए हैं. इस बढ़ती समस्या को देखते हुए, शिक्षा मंत्रालय ने देश के सात राज्यों को एक समान बोर्ड प्रणाली अपनाने की सिफारिश की है.

क्यों जरूरी है एक समान बोर्ड?
शिक्षा मंत्रालय ने देश के सात राज्यों आंध्र प्रदेश, असम, केरल, मणिपुर, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल को एक सामान्य बोर्ड प्रणाली अपनाने की सिफारिश की है. मंत्रालय का कहना है कि इन राज्यों में अधिकतर छात्र परीक्षा में फेल होते हैं, और इसके लिए विभिन्न राज्य बोर्डों का अलग-अलग पाठ्यक्रम जिम्मेदार हो सकते हैं. मंत्रालय का उद्देश्य छात्रों को समान शिक्षा प्रणाली प्रदान करना है, जिससे उनकी परीक्षा के रिजल्ट में सुधार हो.
भारत में स्कूल बोर्डों की स्थिति
भारत में कुल 66 स्कूल शिक्षा बोर्ड हैं, जिनमें तीन राष्ट्रीय और 63 राज्य बोर्ड (54 नियमित और 12 ओपन बोर्ड) शामिल हैं. हालांकि, देश के अधिकांश छात्र (97%) केवल 33 बड़े बोर्डों से पढ़ाई करते हैं, जबकि बाकी बोर्डों में केवल 3% छात्र ही पढ़ते हैं.
अलग-अलग बोर्डों का प्रभाव
शिक्षा सचिव संजय कुमार का मानना है कि अलग-अलग बोर्डों की वजह से छात्रों को न केवल शैक्षणिक दृष्टि से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बल्कि उनके करियर में भी दिक्कतें आती हैं. इन समस्याओं को हल करने के लिए एक सामान्य बोर्ड प्रणाली अपनाने का विचार किया गया है, जिससे शिक्षा का स्तर समान हो सके.
भाषाई माध्यमों का प्रभाव
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि छात्रों का प्रदर्शन उनके भाषाई माध्यम पर भी निर्भर करता है। ओडिया और मलयालम माध्यम के छात्रों का प्रदर्शन कन्नड़, तेलुगू और असमिया माध्यम के छात्रों से बेहतर रहा. उदाहरण के तौर पर, केरल, ओडिशा और मणिपुर जैसे राज्यों में इंटीग्रेटेड बोर्ड सिस्टम के कारण 97% से अधिक छात्र सफल हुए हैं, और केरल का पासिंग रेट तो 99.96% रहा है।