
दिल्ली में बने 13 टोल नाकों पर आए-दिन लोगों को आवाजाही में परेशानी का सामना करना पड़ता है। टोल वसूली और पर्यावरण क्षति पूर्ति शुल्क (ECC) के कारण भारी जाम लगता है और जाम में खड़े अधिकतर निजी या भारी मालवाहन चालक अपने वाहन को चालू रखते हैं जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता हैं। इस समस्या को देखते हुए एक्स्पर्ट्स का मानना है की सरकार को इन टोल नाकों हमेशा के लिए हटा देना चाहिए और वसूली के लिए अन्य विकल्पों का सहारा लेना चाहिए।
यह मांग टोल के कारण लंबे समय तक खड़े रहने वाले वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण के कारण उठ रही है। जो ना केवल पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है बल्कि आम लोगों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है। इसे लेकर विशेषज्ञों का कहना है की इसका कोई वैकल्पिक रास्ता निकालना चाहिए।
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RFID की नाकामयाबी
राजधानी के 13 टोल नोकों पर 2018 में लगाए गए रेडियो फ्रीकवेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस (RFID) भी इस समस्या का समाधान नहीं कर पाए हैं। दरअसल RFID से टोल वसूलने में समय कम लगता है और गाड़ियों को कतार में घंटों इंतजार करने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन आए-दिन गाड़ियों की भारी संख्या में आवाजाही के कारण इससे भी बात बनती नहीं दिखाई दे रही।
टोल नोकों पर अक्सर टोल वसूली के कारण वाहनों की जांच में मानवीय हस्तक्षेप होता है, जिससे जाम में खड़े वाहनों से अधिक प्रदूषण होता है। यह जानकारी स्वयं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण के पूर्व अधिकारियों द्वारा दी गई है।
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वैकल्पिक उपायों पर किया जाए विचार
लंबे समय से टोल नोका को बंद करने की उठ रही है इस मांग पर विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है की टोल वसूली के बजाय वैकल्पिक उपायों पर विचार किया जाना चाहिए। दिल्ली के 156 टोल नोकों में इन 13 से निगम को लगभग 800 करोड का राजस्व प्राप्त होता है। इन टोल नोकों में आया नगर, डिएनडी फ्लाईओवर, टिकरी, कापसहेड़ा, बदरपुर, फरीदाबाद मेन, बदरपुर सराय, शाहदरा फ्लाईओवर, राजोकरी, कुंडली, गाजीपुर में गाजीपुर ओल्ड, केजीटी कुंडली व शाहदरा मेन शामिल हैं, जिनसे 85 प्रतिशत व्यवसायिक वाहन प्रवेश करते हैं।
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