
दिल्ली के जिलाधिकारी (DM) ने राजधानी के 17 प्राइवेट स्कूलों को कड़ी फटकार लगाई है। इन स्कूलों पर आरोप है कि इन्होंने छात्रों पर एनसीईआरटी-NCERT की किताबों की जगह निजी पब्लिशर्स की महंगी किताबें थोप दीं। जिलाधिकारी ने इस कदम को शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE Act) का उल्लंघन मानते हुए संबंधित स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
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जांच में सामने आई किताबों की जबरन बिक्री
इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब शिक्षा निदेशालय को अभिभावकों की ओर से लगातार शिकायतें मिलीं कि कुछ स्कूल बच्चों से जबरन महंगी किताबें खरीदने को कह रहे हैं। इन किताबों की कीमतें बाजार में उपलब्ध एनसीईआरटी-NCERT पुस्तकों से कई गुना ज्यादा हैं। दिल्ली प्रशासन ने तुरंत संज्ञान लेते हुए एक जांच कमेटी गठित की और राजधानी के विभिन्न स्कूलों का निरीक्षण शुरू किया।
जांच में पाया गया कि 17 निजी स्कूलों ने न केवल NCERT की जगह निजी पब्लिशर्स की किताबें अपनाई थीं, बल्कि इन किताबों की बिक्री स्कूल परिसर के भीतर ही करवाई जा रही थी। इससे बच्चों के अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा था।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-RTE Act 2009 के तहत, कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य है। इस कानून के मुताबिक, स्कूलों को NCERT या SCERT द्वारा अनुशंसित किताबों का ही इस्तेमाल करना चाहिए। निजी प्रकाशकों की किताबें थोपना इस कानून का सीधा उल्लंघन है।
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जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों को किताबों की बिक्री से कोई व्यावसायिक लाभ नहीं कमाना चाहिए। इसके बावजूद इन स्कूलों ने निजी पब्लिशर्स से गठजोड़ कर किताबों की बिक्री को मुनाफे का जरिया बना लिया।
प्रशासन ने लिए सख्त कदम
जिलाधिकारी ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी 17 स्कूलों के प्रिंसिपलों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। साथ ही शिक्षा विभाग को निर्देश दिए गए हैं कि वो यह सुनिश्चित करें कि आगामी सत्र से सभी निजी स्कूल केवल NCERT या SCERT की किताबों का ही उपयोग करें।
इसके अलावा, दिल्ली प्रशासन ने स्कूलों को चेतावनी दी है कि यदि भविष्य में दोबारा ऐसी गतिविधियों की पुष्टि होती है, तो स्कूल की मान्यता रद्द करने की कार्यवाही भी की जा सकती है।
महंगी किताबों से परेशान अभिभावक
अभिभावकों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। कई अभिभावकों ने बताया कि निजी प्रकाशकों की किताबें न केवल महंगी थीं, बल्कि हर साल किताबों की सूची बदल दी जाती थी, जिससे पुरानी किताबें दोबारा इस्तेमाल नहीं हो पाती थीं।
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एक अभिभावक ने कहा, “हम हर साल हजारों रुपये केवल किताबों पर खर्च कर देते हैं। अगर NCERT की किताबें लागू की जाती हैं, तो न केवल खर्च कम होगा बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता भी सुनिश्चित होगी।”
निजी पब्लिशर्स और स्कूलों के गठजोड़ पर उठे सवाल
इस पूरे प्रकरण ने शिक्षा व्यवस्था में निजी पब्लिशर्स और स्कूलों के बीच बढ़ते गठजोड़ पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह के मामले सामने आए हैं। कई बार देखा गया है कि निजी स्कूल किताबों और यूनिफॉर्म की बिक्री को मुनाफे का माध्यम बना लेते हैं।
शिक्षाविदों का मानना है कि ऐसी गतिविधियां शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं और सरकारी नीतियों के खिलाफ हैं।