
भारत में शिक्षा, शादी, संपत्ति आदि को लेकर कई कानून बनाए गए हैं, जिनका उल्लंघन होने पर लोग न्याय की मांग कर सकते है। देश में संपत्ति को लेकर कई मामले सामने आते हैं, संपत्ति से जुडा मामला तब पेचीदा होता है जब बात लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर हो। पश्चिमी देशों की तरह अब भारत में भी लिव-इन का चलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है, कई लोगों के लिव-इन में रहते हुए बच्चे हो जाते हैं ऐसे में शादी से पहले बच्चा होने पर क्या वह पिता की संपत्ति का अधिकारी होता है या नहीं इसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल भी बने रहते हैं।
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क्या है लिव-इन से जुडी न्याय व्यवस्था
बता दें देश में लिव-इन रिलेशनशिप को न्याय व्यवस्था ने कुछ मान्यता दी है। इसमें कोर्ट यह साफ कर चुके हैं की यदि एक रिश्ता लंबे समय तक चल रहा है तो इसे शादी के बराबर ही मना जा सकता है। हालाँकि लिव-इन में हुए बच्चे को लेकर हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम के तहत ऐसा बच्चा पिता की स्व-अर्जित संपत्ति का आधिकारी हो सकता है। जबकि पुश्तैनी संपत्ति पर हिस्से के लिए भी बच्चा दावेदारी पेश कर सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ
सुप्रीम कोर्ट की और से लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर यह कहा गया है की यदि लिव-इन रिलेशनशिप लंबे समय तक स्थाई और सार्वजनिक मान्य रहा है तो उसमें पैदा हुआ बच्चा भी वैध माना जाएगा। ऐसे में वह बच्चा भी माता-पिता की संपत्ति में हकदार हो सकता है। हालाँकि संपत्ति भी यदि स्व-अर्जित है तो इस मामले में मालिक को यह हक होता है की वह अपनी संपत्ति किसी को भी दे या न दे।
ऐसे में यह पिता पर निर्भर करता है की वह अपनी वसीयत अपने लिव -इन से हुए बच्चे के नाम करता है या नहीं यदि पिता वसीयत अपने बच्चे के नाम करता है तो ही बच्चे का संपत्ति पर अधिकारी हो सकता है। बिना वसीयत के ऐसे बच्चे का इस संपत्ति पर क़ानूनी अधिकार नहीं होता।
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पुश्तैनी संपत्ति पर क्या है नियम
पुश्तैनी संपत्ति को लेकर हिन्दू कानून के अनुसार इसमें हर बैध संतान को जन्म से ही हिस्सा मिलता है। यदि अदालत ने लिव-इन को वैध माना है, तो बच्चा भी इस संपत्ति में बराबर का हकदार हो सकता है, फिर चाहे वसीयत हो या न हो। लिव-इन में पैदा हुए बच्चे का संपत्ति पर अधिकार संपत्ति के प्रकार, क़ानूनी दस्तावेज और अदालत की मान्यता पर निर्भर करता है।