
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि किसी भी सरकारी भर्ती प्रक्रिया में यदि जाति प्रमाणपत्र मांगा गया हो, तो वह निर्धारित प्रारूप में ही प्रस्तुत किया जाना अनिवार्य है। यह फैसला उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड (UPPRPB) के एक मामले में आया, जिसमें एक OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) उम्मीदवार ने केंद्र सरकार के लिए मान्य प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया, जबकि विज्ञापन में स्पष्ट रूप से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रारूप की मांग की गई थी।
इस पर सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन शामिल थे, ने कहा कि भर्ती विज्ञापन की शर्तें केवल औपचारिकता नहीं होतीं, बल्कि उनके पालन की जिम्मेदारी हर उम्मीदवार की होती है। यदि कोई उम्मीदवार गलत प्रारूप में दस्तावेज प्रस्तुत करता है, तो वह यह दावा नहीं कर सकता कि केवल जातीय पहचान के आधार पर उसे छूट दी जाए।
भर्ती में छूट का आधार नहीं बन सकता गलत प्रमाणपत्र
जब उक्त उम्मीदवार को भर्ती प्रक्रिया से बाहर किया गया, तो उसने पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन दोनों ही न्यायालयों ने स्पष्ट रूप से कहा कि गलत प्रारूप में दिया गया प्रमाणपत्र, भले ही वह किसी मान्यता प्राप्त श्रेणी से संबंधित हो, चयन प्रक्रिया में मान्य नहीं होगा।
न्यायमूर्ति दत्ता द्वारा लिखे फैसले में Registrar General, Calcutta High Court बनाम श्रीनिवास प्रसाद शाह (2013) 12 SCC 364 का संदर्भ भी दिया गया, जिसमें यह कहा गया था कि यदि प्रमाणपत्र न तो निर्धारित प्रारूप में है और न ही सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया है, तो उसका उपयोग कैंडिडेट की पात्रता सिद्ध करने में नहीं किया जा सकता।
प्रमाणपत्र की तकनीकी चूक नहीं, बल्कि नियमों की अवहेलना
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उम्मीदवार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह आवेदन करते समय सभी शर्तों को ध्यानपूर्वक पढ़े और उनके अनुसार आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करे। यदि किसी उम्मीदवार को प्रमाणपत्र के प्रारूप को लेकर संदेह हो, तो उसे संबंधित प्राधिकारी से सही प्रारूप में प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहिए।
यह मान लेना कि “मैं आरक्षित श्रेणी से आता हूँ, इसलिए किसी भी प्रारूप में दिया गया प्रमाणपत्र मान्य होना चाहिए”, न केवल नियमों की अनदेखी है, बल्कि यह भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और न्यायप्रियता के विरुद्ध भी है।
मोहित और किरण जैसे मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
सुप्रीम कोर्ट ने इसी तर्ज पर मोहित और किरण नामक उम्मीदवारों की याचिकाएं भी खारिज कर दीं, जिन्होंने यह तर्क दिया था कि निर्धारित प्रारूप की मांग केवल औपचारिकता है। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह औपचारिकता नहीं, बल्कि भर्ती प्रक्रिया की मूलभूत आवश्यकता है। UPPRPB द्वारा मांगा गया प्रमाणपत्र प्रारूप सिर्फ कागजी खानापूर्ति नहीं, बल्कि एक अनिवार्य शर्त है, जिसका पालन हर उम्मीदवार को करना ही होगा।