Census 2025: देश में जनगणना की तारीख तय! जानें आपके इलाके में कब पहुंचेगी टीम

देश में 1931 के बाद पहली बार जातिगत जनगणना की तारीख तय हो गई है। यह सिर्फ एक आंकड़ों की गिनती नहीं, बल्कि राजनीति, आरक्षण और सत्ता समीकरण का भविष्य तय करने वाला कदम है। जानिए कब से शुरू होगी यह ऐतिहासिक प्रक्रिया, किन राज्यों में पहले होगी शुरुआत और क्यों हर नेता की नजर इसी पर टिकी है।

By GyanOK

देशभर में लंबे समय से जिस जातीय जनगणना की मांग की जा रही थी, अब उसकी आधिकारिक तारीखें घोषित की जा चुकी है. 94 वर्षों बाद केंद्र सरकार ने जातिवार जनगणना कराने का निर्णय लिया है. यह प्रक्रिया दो चरणों में की जाएगी. पहला चरण 1 अक्टूबर 2026 से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे पहाड़ी राज्यों में शुरू होगा, जबकि दूसरा चरण 1 मार्च 2027 से देश के बाकी हिस्सों में संपन्न कराया जाएगा.

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जनगणना के साथ ही होगी जातियों की गणना

यह पहली बार होगा जब आज़ादी के बाद जातियों की गणना नियमित जनगणना के साथ की जाएगी. पिछली बार 1931 में अंग्रेज़ों ने जातिवार जनगणना कराई थी. 2011 में सामाजिक आर्थिक और जातीय जनगणना (SECC) हुई जरूर थी, लेकिन उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए.

डिजिटल टेक्नोलॉजी से होगी जनगणना, समय बचेगा

सरकार इस बार डिजिटल माध्यमों के जरिए जनगणना कराने की तैयारी में है, जिससे पूरी प्रक्रिया ज्यादा सटीक और तेज़ होगी। सरकार का दावा है कि पहले जहां पूरी प्रक्रिया में 5 साल लगते थे, अब 3 साल में ही इसे पूरा कर लिया जाएगा.

क्यों महत्वपूर्ण है जातिगत जनगणना?

जातिगत जनगणना के जरिए सरकार को यह स्पष्ट जानकारी मिलेगी कि देश में किस जाति की कितनी आबादी है. अब तक आरक्षण की नीतियां अनुमान और पुराने आंकड़ों पर आधारित थीं. खासकर OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) की सही संख्या न होने से कई नीतिगत फैसले अधूरे रह जाते थे.

सियासी असर तय

विशेषज्ञों और राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह जनगणना भारतीय राजनीति का चेहरा बदल सकती है. इसकी मदद से यह तय किया जा सकेगा कि किस विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में किस जाति की कितनी हिस्सेदारी है. इसके आधार पर भविष्य की राजनीतिक रणनीतियां, आरक्षण नीतियां और संसदीय समीकरण प्रभावित हो सकते हैं.

रोहिणी आयोग की रिपोर्ट अब भी सार्वजनिक नहीं

2017 में रोहिणी आयोग ने सुझाव दिया था कि OBC वर्ग को उपश्रेणियों में बांटा जाए ताकि सबसे कमजोर जातियों को वास्तविक लाभ मिल सके. लेकिन रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है. जातीय जनगणना इस दिशा में निर्णायक कदम हो सकता है.

संविधान और सामाजिक न्याय की नई तस्वीर

जनगणना अधिनियम 1948 और जनगणना नियमावली 1990 के तहत होने जा रही यह प्रक्रिया न केवल जनगणना बल्कि सामाजिक न्याय की नई रूपरेखा तय करेगी. इससे सामाजिक-आर्थिक विषमताओं की गहराई को समझने में मदद मिलेगी और हाशिए पर पड़ी जातियों को मुख्यधारा में लाने का रास्ता खुलेगा.

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