
भारतीय Renewable Energy क्षेत्र की प्रमुख कंपनी वारी एनर्जीज (Waaree Energies) के शेयरों में 23 मई 2025 को भारी गिरावट दर्ज की गई। इस गिरावट का मुख्य कारण अमेरिका में प्रस्तावित एक विवादास्पद टैक्स बिल है, जिसे पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन प्राप्त है। इस बिल के प्रभाव से वैश्विक स्तर पर क्लीन एनर्जी कंपनियों के शेयरों में दबाव देखा गया, जिसका असर भारतीय कंपनियों पर भी पड़ा।
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अमेरिकी टैक्स बिल का प्रभाव
अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में पारित इस नए टैक्स बिल का उद्देश्य बिडेन प्रशासन के इंफ्लेशन रिडक्शन एक्ट (IRA) के तहत स्वच्छ ऊर्जा कंपनियों को मिलने वाले सरकारी समर्थन और फंडिंग को समाप्त करना है। इस बिल में वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और इलेक्ट्रिक भारी-भरकम वाहनों की खरीद के लिए दिए जाने वाले सरकारी मदद को खत्म करने की योजना है। इसके अलावा, यह बिल अमेरिका में सोलर रूफटॉप सिस्टम लगाने वाले टैक्सपेयर्स के लिए 30% फेडरल टैक्स क्रेडिट को समाप्त करने का भी प्रस्ताव करता है।
वारी एनर्जीज और प्रीमियर एनर्जीज पर असर
इस बिल के पारित होने के बाद, वारी एनर्जीज के शेयरों में 11% तक की गिरावट देखी गई, जबकि प्रीमियर एनर्जीज के शेयरों में भी 6.12% की गिरावट दर्ज की गई। वारी एनर्जीज की ऑर्डर बुक का 57% हिस्सा अमेरिका आधारित है, जिससे यह कंपनी अमेरिकी बाजार पर अत्यधिक निर्भर है। प्रीमियर एनर्जीज की भी अमेरिकी बाजार में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। इस प्रस्तावित बिल के कारण निवेशकों में चिंता बढ़ गई है कि अमेरिकी बाजार में Renewable Energy उत्पादों की मांग में कमी आ सकती है, जिससे इन कंपनियों के कारोबार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
वैश्विक बाजार में प्रतिक्रिया
अमेरिका में क्लीन एनर्जी कंपनियों के शेयरों में भी भारी गिरावट देखी गई। अमेरिका की सबसे बड़ी रूफटॉप सोलर कंपनी सनरन (SunRun) और विंड और सोलर प्रोजेक्ट्स पर काम करने वाली नेक्स्टएरा एनर्जी (NextEra Energy) के शेयरों में 7% से 37% तक की गिरावट दर्ज की गई। इस वैश्विक प्रतिक्रिया का असर भारतीय बाजार पर भी पड़ा, जिससे वारी एनर्जीज और प्रीमियर एनर्जीज के शेयरों में गिरावट आई।
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वारी एनर्जीज की वित्तीय स्थिति
वित्तीय वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में वारी एनर्जीज ने ₹619 करोड़ का शुद्ध लाभ दर्ज किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 34% अधिक है। कंपनी की राजस्व ₹4,003.9 करोड़ रही, जो 36.4% की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है। कंपनी की ऑर्डर बुक ₹47,000 करोड़ की है, जिसमें से 57% अंतरराष्ट्रीय बाजार से संबंधित है।
निवेशकों के लिए संकेत
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक नीतिगत निर्णयों का भारतीय कंपनियों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर उन कंपनियों पर जो अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर हैं। निवेशकों को ऐसे वैश्विक घटनाक्रमों पर नजर रखनी चाहिए और अपने निवेश निर्णयों में सतर्कता बरतनी चाहिए।