नोटों से हटाई ‘राष्ट्रपिता’ की तस्वीर, नए नोटों में हिंदू और बौद्ध मंदिरों की फोटो लगी

बांग्लादेश ने अपने नए नोटों से राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर हटा दी है, अब क्या भारत में भी महात्मा गांधी की तस्वीर पर खतरा मंडरा रहा है? नोटों पर फोटो छापने के पीछे क्या है नियम, कौन लेता है ये फैसला और क्या सच में कोई बदलाव संभव है? जानिए नोटों पर फोटो छपने की अंदरूनी कहानी।

By GyanOK

शेख हसीना के बांग्लादेश से निकलने के बाद बांग्लादेश की वर्तमान सरकार ने हाल ही में जारी किए गए 20, 50 और 1000 टका के नए नोटों में एक बड़ा बदलाव किया है. इन नोटों से देश के संस्थापक और पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्ररहमान की तस्वीर हटा दी गई है जिन्हें बांग्लादेश का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है.

अब इन नोटों पर किसी भी नेता की जगह हिंदू और बौद्ध मंदिरों जैसे पारंपरिक स्थलों की तस्वीरें छापी जाएंगी. बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद नई सरकार बनी है जिसने कई कानूनों में बदलाव किया है ये भी उन्हीं बदलावों में से एक है.

नोटों से हटाई 'राष्ट्रपिता' की तस्वीर, नए नोटों में हिंदू और बौद्ध मंदिरों की फोटो लगी
नोटों से हटाई ‘राष्ट्रपिता’ की तस्वीर, नए नोटों में हिंदू और बौद्ध मंदिरों की फोटो लगी

तो क्या हमारे देश भारत में भी कभी ऐसा हो सकता है? क्या महात्मा गांधी की तस्वीर भारतीय नोटों से हटाई जा सकती है? जान लेते हैं

क्या है भारत में नोट पर तस्वीर छापने का नियम?

भारत में नोटों पर कौन-सी तस्वीर छपेगी, किसकी तस्वीर छपेगी इसका फैसला सिर्फ सरकार की मर्जी से नहीं होता. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) एक्ट, 1934 की धारा 25 के अनुसार, नोटों के डिजाइन और उसमें छपी तस्वीरों को लेकर फैसला केंद्र सरकार और आरबीआई दोनों मिलकर फैसला लेते हैं.

इसका मतलब है कि अगर किसी भी तस्वीर को नोट से हटाना या नई तस्वीर लगाना हो, तो सरकार और RBI दोनों मिलकर ये फैसला लेना होगा और आपस में सहमत होना होगा की क्या करना है किसकी तस्वीर हटानी है या छापनी है.

क्या गांधीजी की तस्वीर हट सकती है?

सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो केंद्र सरकार और आरबीआई दोनों सहमत हों तो नोट पर छपी कोई भी तस्वीर बदली जा सकती है लेकिन इस बदलाव के बाद राजनीतिक तौर पर विवाद हो सकता है साथ ही जनता भी आक्रोशित हो सकती है

गौरतलब है कि भारत में पहली बार गांधीजी की तस्वीर नोट पर 1966 में छापी गई थी. उससे पहले नोटों पर अशोक स्तंभ, रॉयल बंगाल टाइगर, खेती, शालीमार गार्डन, और आर्यभट्ट उपग्रह जैसी तस्वीरें छपती थीं.

साल 2016 में यह चर्चा भी तेज हुई थी कि कुछ नोटों पर डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीरें लगाई जा सकती हैं, लेकिन इस प्रस्ताव पर बाद में कोई अमल नहीं हुआ.

क्या तस्वीरों का चुनाव राजनीति से प्रेरित होता है?

विशेषज्ञों की मानें तो नोटों पर छपने वाली तस्वीरें अक्सर सांस्कृतिक या ऐतिहासिक प्रतीकों से जुड़ी होती हैं, लेकिन कई बार इनका चुनाव राजनीतिक कारणों से भी होता है. बांग्लादेश का हालिया फैसला इसका उदाहरण है.

भारत में गांधीजी की छवि केवल नोटों तक सीमित नहीं है, बड़ी संख्या में लोग गांधी जी को स्वतंत्रता संग्राम, विश्व शांति का प्रतीक मानती है. ऐसे में उनकी तस्वीर को हटाने का कोई भी फैसला न केवल राजनीतिक भूचाल ला सकती है, बल्कि जनता की तीखी प्रतिक्रिया भी संभव है.

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