चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया है कि बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मतदाता पात्रता के दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा.

चुनाव आयोग का यह बयान सुप्रीम कोर्ट द्वारा 10 जुलाई को दिए गए आदेश के जवाब में आया. सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से 21 जुलाई तक इस मुद्दे पर अपना जवाब देने को कहा था और सुझाव दिया था कि इन दस्तावेजों को मतदाता सत्यापन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
आधार कार्ड को अस्वीकार करने का कारण
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा कि आधार कार्ड केवल पहचान प्रमाण के रूप में उपयोग किया जा सकता है, न कि नागरिकता के प्रमाण के रूप में. इसका कारण यह है कि आधार कार्ड भारत में 182 दिन तक रहने वाले निवासियों को भी जारी किया जा सकता है, जो जरूरी नहीं कि भारतीय नागरिक हों. आयोग ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत, केवल नागरिक और 18 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति को ही मतदाता सूची में शामिल किया जा सकता है, और आधार इसका सही प्रमाण नहीं है.
राशन कार्ड पर भी सवाल
चुनाव आयोग ने राशन कार्ड को भी मान्य नहीं माना. आयोग का कहना है कि देश में नकली राशन कार्ड की बड़ी संख्या के कारण इन्हें भरोसेमंद दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता. केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 5.8 करोड़ नकली राशन कार्ड पकड़े गए थे. इस मामले में बिहार के मोतिहारी में हाल ही में एक गिरोह को नकली राशन कार्ड बनाने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था.
वोटर आईडी का भी विरोध
आयोग ने वोटर आईडी (EPIC) को भी खारिज किया और इसे पहले की मतदाता सूची का बाई प्रोडक्ट बताया. आयोग का कहना है कि यह मतदाता सत्यापन के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि अब एक नई मतदाता सूची तैयार की जा रही है.
अगली सुनवाई 28 जुलाई को
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को तय की है. कोर्ट ने 10 जुलाई को SIR प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन आयोग से आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों के बारे में पुनः विचार करने को कहा था. चुनाव आयोग का कहना है कि यह कदम केवल सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है कि बिहार विधानसभा चुनावों में कोई गड़बड़ी न हो.
विपक्षी दलों और संगठनों की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों और गैर-सरकारी संगठनों ने इस विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR) को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है. इसमें राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, और एनसीपी की सुप्रिया सुले सहित कई अन्य नेताओं ने भी इस मुद्दे पर आवाज उठाई है. उनका कहना है कि केवल 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं से सत्यापन की मांग करना और आधार जैसे सामान्य दस्तावेजों को अस्वीकार करना अनुचित है.