कभी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भरोसेमंद नेता रहे सत्यपाल मलिक, आज सरकार के मुखर आलोचक बनकर सामने आए हैं। भाजपा सरकार द्वारा उन्हें बिहार, जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय जैसे राज्यों में राज्यपाल बनाया गया था, लेकिन अब वही मलिक भाजपा की नीतियों, कार्यप्रणाली और नेतृत्व पर तीखे सवाल उठा रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक वफादार सिपाही अब विपक्ष के स्वर में बोलने लगे?

कृषि कानूनों और किसान आंदोलन पर तीखी आलोचना
सत्यपाल मलिक का भाजपा से मतभेद उस समय स्पष्ट रूप से सामने आया, जब उन्होंने केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों का विरोध किया। उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों का खुलकर समर्थन किया। मलिक ने दावा किया कि जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से किसानों की मौतों पर चिंता जताई, तो उन्हें “घमंड से भरी” प्रतिक्रिया मिली।
पुलवामा हमले को लेकर बड़ा खुलासा

पूर्व राज्यपाल ने पुलवामा आतंकी हमले को लेकर सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सीआरपीएफ ने जवानों को हवाई मार्ग से भेजने की मांग की थी, लेकिन गृह मंत्रालय ने इनकार कर दिया। मलिक ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने उन्हें इस मुद्दे पर चुप रहने के लिए कहा था, जिससे सवाल उठते हैं कि क्या इस हमले को रोका जा सकता था?
भ्रष्टाचार के आरोप और सियासी प्रतिशोध
जम्मू-कश्मीर में अपने कार्यकाल के दौरान मलिक ने किरू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और एक ग्रुप मेडिकल इंश्योरेंस योजना में भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि उन्हें 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। हाल ही में, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने उन्हीं मामलों में मलिक के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है। मलिक का कहना है कि यह सब राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है।
राजनीतिक भविष्य और भाजपा पर तीखा हमला
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्यपाल मलिक अब भाजपा की राजनीति से पूरी तरह किनारा कर चुके हैं। वे बार-बार यह कहते सुने गए हैं कि भाजपा सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है, जिसमें “राम मंदिर पर हमला या पाकिस्तान से युद्ध की साजिश तक” शामिल हो सकती है। उन्होंने अग्निपथ योजना, अनुच्छेद 370 की समाप्ति और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भी सरकार की आलोचना की।
भविष्य की राजनीति में भूमिका?
अब सवाल यह है कि क्या सत्यपाल मलिक विपक्षी खेमे में शामिल होंगे या राजनीतिक निष्क्रियता को ही अपनाएंगे? उन्होंने संकेत दिए हैं कि वे ‘जनहित’ में अपनी आवाज उठाते रहेंगे, चाहे किसी भी पार्टी को इसका असर क्यों न झेलना पड़े।
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