POK को लेकर क्यों भारत के लोग पाकिस्तान से जंग लड़ने को हो जाते है तैयार, क्या है POK का इतिहास, क्या भारत वापस कर पाएगा POK

भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चला आ रहा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) विवाद आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। भारत इसे अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है और इसे पुनः प्राप्त करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। हालांकि इसके लिए सैन्य, कूटनीतिक और राजनीतिक रणनीतियों की गहराई से आवश्यकता है। यह केवल एक क्षेत्रीय नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता और आत्मगौरव से जुड़ा मुद्दा है।

By GyanOK

POK को लेकर क्यों भारत के लोग पाकिस्तान से जंग लड़ने को हो जाते है तैयार, क्या है POK का इतिहास, क्या भारत वापस कर पाएगा POK
Mission to return PoK

भारत और पाकिस्तान के बीच पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) को लेकर चल रहा विवाद दशकों पुराना है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक और संवेदनशील बना हुआ है। यह केवल एक क्षेत्रीय विवाद नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान, सुरक्षा और ऐतिहासिक सच्चाई से जुड़ा मसला है। भारत में इसे एक ऐसे हिस्से के रूप में देखा जाता है जो अवैध रूप से पाकिस्तान के कब्ज़े में है और जिसे हर हाल में पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए।

भारत में PoK को लेकर युद्ध की भावना क्यों प्रबल है

भारत में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) को लेकर जो गहरी भावना है, उसका मूल कारण यह है कि इसे भारत का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की घटनाएं होती हैं—जैसे हाल ही में पहलगाम में हुआ हमला जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई—तो यह भावना और अधिक तीव्र हो जाती है। भारत सरकार द्वारा उठाए गए साहसिक कदम, जैसे “ऑपरेशन सिंदूर”, जनता को यह विश्वास दिलाते हैं कि PoK को वापिस लेना केवल सपना नहीं, बल्कि एक लक्ष्य है जिसे प्राप्त किया जा सकता है।

सरकार और सेना के मुखर रुख ने लोगों के भीतर यह उम्मीद पैदा की है कि भारत अब पहले की तरह प्रतिक्रिया देने में संकोच नहीं करेगा। इसके साथ ही सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों के माध्यम से राष्ट्रवादी भावना को और बल मिलता है, जिससे PoK को लेकर आक्रोश और जागरूकता दोनों बढ़े हैं।

PoK का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1947 में जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, उस समय जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी, जिसके शासक महाराजा हरि सिंह थे। उन्होंने आरंभ में स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया था, लेकिन जब पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों ने राज्य पर हमला किया, तो उन्होंने भारत से मदद मांगी और 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए।

इस निर्णय के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच प्रथम युद्ध छिड़ा जो 1949 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्धविराम के रूप में समाप्त हुआ। युद्धविराम रेखा (Line of Control) निर्धारित की गई, जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर का लगभग एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया, जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) कहा जाता है। यह इतिहास भारत की स्थिति को नैतिक और कानूनी रूप से मजबूत बनाता है।

क्या भारत वास्तव में PoK को वापिस ले सकता है?

भारत सरकार ने बार-बार संकेत दिए हैं कि PoK को वापिस लेना उसकी प्राथमिकता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का हालिया बयान—”हम चोरी हुए कश्मीर की वापसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं”—इस दिशा में भारत की दृढ़ता को दर्शाता है। लेकिन यह राह उतनी सरल नहीं जितनी प्रतीत होती है।

  • सैन्य दृष्टिकोण से, भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं, जिससे किसी भी प्रत्यक्ष युद्ध की स्थिति में क्षेत्रीय स्थिरता पर खतरा उत्पन्न हो सकता है। सैन्य कार्रवाई से पूर्व रणनीतिक सूझबूझ और वैश्विक समीकरणों को समझना आवश्यक है।
  • राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से, भारत PoK को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल करने के पक्ष में है, जबकि पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाना चाहता है। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं भले ही औपचारिक भूमिका निभाएं, लेकिन भारत का स्पष्ट रुख रहा है कि यह एक द्विपक्षीय मामला है।
  • आंतरिक दृष्टिकोण से, PoK में पाकिस्तान सरकार के खिलाफ वर्षों से असंतोष और विरोध के स्वर उठते रहे हैं। इन प्रदर्शनों में स्थानीय लोगों की नाराजगी, भेदभाव और बुनियादी सुविधाओं की कमी का स्वर स्पष्ट होता है। भारत के लिए यह एक नैतिक अवसर हो सकता है, परंतु इसे संभालने के लिए अत्यंत सतर्कता, संवेदनशीलता और रणनीतिक धैर्य की आवश्यकता होगी।
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