
यदि आपके पास एक घर है जिसे आपने किराए पर दिया हुआ है, तो ये जानकारी आपके लिए काम की हो सकती है. आज के समय पर हर कोई अपने घर में किरायेदार रखता है, लेकिन कई बार ये आपकी प्रॉपर्टी पर कब्जा करके उसे अपने नाम कर लेते है. ऐसे ही घटना एक मकान मालिक के साथ हुई. उसके बाद शहर के पॉश इलाके में एक महंगी प्रॉपर्टी थी. जिसपर एक किरायेदार ने 63 साल से कब्जा कर लिया है.
उस व्यक्ति ने कानूनी लड़ाई लड़ते हुए अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी, फिर बेटों ने इस कानूनी जंग को जारी रखा. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस परिवार ने अपना ही घर पाने में एक परिवार की दो पीढ़ियों के 63 साल चले गए. किराएदार ने इतने साल एक पॉश एरिया के घर में आराम से निकाल दिए. ये केस 63 साल तक अदालत में चला जिसके बाद अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रॉपर्टी को मालिक के बच्चों के हाथों में सौंप दी.
1952 से शुरू हुई कानूनी लड़ाई
इस लड़ाई की शुरुआत 1952 में हुई थी. तब एक आदमी ने अपनी ज़मीन 10 साल के लिए कुछ लोगों को किराए पर दी थी. उसके बाद 1962 में ये जमीन किसी और को बेच दी गई. 1965 में नए मालिक ने देखा कि किराएदार बिना इजाज़त के ज़मीन पर कब्ज़ा किए बैठे हैं, तो उन्होंने उसे हटाने के लिए कोर्ट में केस कर दिया। लेकिन 1974 में, यह केस सुप्रीम कोर्ट में हार गए.
1999 में हाई कोर्ट पहुंचा केस
नए मालिक ने 1975 में फिर से ज़िला अदालत में केस दायर किया. जिसके बाद ये मामला 1999 में हाई कोर्ट पहुंचा, लेकिन 2013 में वहाँ भी हार गए. केस के चलते बीच में मालिक की मृत्यु हो गई, पर उनके बच्चों ने कानूनी लड़ाई जारी रखी. काफी समय तक लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार 24 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला मालिक के बच्चों के हक में सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
मकान मालिक की मृत्यु होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में किराएदारों के वकील के तर्क को खारिज कर दिया. किराएदारों के वकील ने कहा था कि मालिक की मौत के बाद उनके बच्चे केस को आगे नहीं बढ़ा सकते, क्योंकि ये केस उनके पिता की ज़रूरत के आधार पर शुरू किया गया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि ‘ज़रूरत’ का मतलब सिर्फ मालिक की अपनी ज़रूरत नहीं होता, बल्कि इसमें परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें भी शामिल होती हैं.
इसके अलावा ये भी कहा कि उत्तर प्रदेश के एक कानून (धारा 21(7) के अनुसार मालिक की मृत्यु होने पर भी उनके वैध उत्तराधिकारी यानी बच्चे उस केस को आगे बढ़ा सकते हैं.
मकान मालिक को देनी पड़ी प्रोपर्टी
केस जितने के बाद मकान मालिक को देनी पड़ी प्रोपर्टी होगी और साथ ही अब तक का बकाया किराया चुकाना होगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से साफ पता चलते है कि प्रॉपर्टी के असली मालिक और उनके कानूनी वारिस अपने हक के लिए अदालत में न्याय पा सकते है.